प्रश्न –रक्षाबंधन पर्व कहाँ से प्रारंभ हुआ है ?
उत्तर -हस्तिनापुर तीर्थ से इस पर्व का शुभारंभ हुआ है ।
प्रश्न –यह पर्व किसकी स्मृति से चला ?
उत्तर -सात सौ दिगम्बर महामुनियों के ऊपर हुए अग्नि उपसर्ग को दूर करने के उपलक्ष्य में यह पर्व प्रारंभ हुआ है ।
प्रश्न –वे सात सौ मुनि किस संघ के थे ?
उत्तर -श्री अकम्पनाचार्य नाम के आचार्यश्री के संघ मे ७०० मुनिराज थे।
प्रश्न –उनके ऊपर अग्नि उपसर्ग किसने किया था ?
उत्तर -‘‘बलि’’ नाम के मंत्री ने छलपूर्वक राजा से वरदान के रूप में ७ दिन का राज्य मांगकर उन मुनियों को मारने के उद्देश्य से उपसर्ग किया था।
प्रश्न –कौन से राजा का राज्य बलि ने मांगा था ?
उत्तर -हस्तिनापुर के राजा पद्म से उनके पूर्वकृत उपकार के बदले में राज्य मांगा था।
प्रश्न –बलि ने उन निरपराधी मुनियों पर उपसर्ग क्यों किया था ?
उत्तर -धर्म विव्देष के कारण।
प्रश्न –उनके उपसर्ग को किसने दूर किया था ?
उत्तर -विष्णुकुमार महामुनिराज ने विक्रियाऋद्धि के प्रयोग से उस उपसर्ग को दूर किया।
प्रश्न –इसका संक्षिप्त कथानक क्या है ?
उत्तर -एक बार हस्तिनापुर के उद्यान में अकम्पनाचार्य मुनिराज ने अपने ७०० मुनियों के साथ चातुर्मास स्थापित कर लिया। वहाँ के राजा पद्म अत्यन्त धर्मप्रेमी थे किन्तु उसका मंत्री बलि बहुत ही दुष्ट तथा जिनधर्म विव्देषी था। उसने पूर्व में कभी राजा पद्म को युद्ध में सहायता प्रदान करने के बदले में राजा के व्दारा दिये गये वरदान को धरोहर में रखा हुआ था अत: राजा को याद दिलाकर उसने ७ दिन का राज्य वरदान में मांगकर उन सात सौ मुनियों को कांटों की बाड़ में घेरकर अग्नि उपसर्ग किया जिससे प्रजा में त्राहिमाम् मच गया। पुन: विष्णुकुमार मुनिराज ने उज्जैनी नगरी से हस्तिनापुर आकर अपनी विक्रिया ऋद्धि से उनका उपसर्ग दूर किया और वात्सल्य अंग का परिचय दिया। इसी वात्सल्य अंग के प्रतीक में यह रक्षाबंधन पर्व सारे देश में मनाया जाता है ।
प्रश्न –रक्षाबंधन पर्व के दिन हमें क्या करना चाहिए ?
उत्तर -उस दिन जैन साधु-साध्वियों को आहार देकर आपस में रक्षासूत्र बांधकर रक्षाबंधन पर्व मनाना चाहिए और उस दिन श्रेयांसनाथ भगवान का मोक्षकल्याणक है सो निर्वाणलाडू भी चढ़ाना चाहिए।
प्रश्न –क्या रक्षाबंधन के दिन केवल बहनों को ही भाइयों के राखी बांधने का नियम है ?
उत्तर -ऐसा कुछ भी नहीं है, यह तो व्यवहार में प्रचलित हो गया है । उस दिन तो सभी नर-नारियों को परस्पर में रक्षासूत्र बांधकर धर्म एवं धर्मायतनों की रक्षा करने का संकल्प लेना चाहिए, यही रक्षाबंधन पर्व का तात्पर्य है ।
प्रश्न –नंदीश्वर द्वीप किस लोक में है ?
उत्तर -मध्यलोक में आठवें व्दीप का नाम नंदीश्वर व्दीप है ।
प्रश्न –नंदीश्वर व्दीप में कितने चैत्यालय हैं ?
उत्तर -बावन चैत्यालय हैं।
प्रश्न –उन बावन जिनालयों की व्यवस्था किस प्रकार है ?
उत्तर -नंदीश्वर व्दीप में चारों दिशाओं में १३-१३ जिनालय होने से १३x४ = ५२ हो जाते हैं।
प्रश्न –नंदीश्वर व्दीप में नवदेवताओं में से कितने देवता होते हैं ?
उत्तर -वहाँ जिनचैत्य और चैत्यालय ये मात्र दो देवता रहते हैं।
प्रश्न –नंदीश्वर व्दीप में चारों निकाय के देव कब–कब जाते हैं
उत्तर -यूँ तो देवतागण अपनी इच्छानुसार इस व्दीप के दर्शन करने प्राय: जाया करते हैं फिर भी कार्तिक, फाल्गुन और आषाढ़ मास के आष्टान्हिका पर्व में चारों निकाय के देव नंदीश्वर व्दीप में जाकर आठों दिन तक अखण्ड पूजन करते हैं।
प्रश्न –नंदीश्वर व्दीप में जो प्रतिमाएँ विराजमान हैं वे अरहंतों की होती हैं या सिद्धो की ?
उत्तर -वहाँ अनादिनिधन प्रतिमाएँ विराजमान हैं इसलिए उन्हें स्वयंसिद्ध प्रतिमाएँ कहते हैं।
प्रश्न –नंदीश्वर व्दीप में दिन और रात कितने घंटे के होते हैं ?
उत्तर -नंदीश्वर व्दीप में दिन और रात का भेद नहीं होता है ।
प्रश्न –इस व्दीप का निर्माण कब और किनके ध्वारा हुआ है ?
उत्तर -यह व्दीप अकृत्रिम और अनादिनिधन है इसे न किसी ने बनवाया है और न कोई नष्ट कर सकता है । हाँ, आज इसकी प्रतिकृतिरूप कृत्रिम नंदीश्वर व्दीप की रचनाएँ अनेक तीर्थों एवं नगरों में बनी हुई हैं।
प्रश्न –क्या ऋद्धिधारी मुनि भी इस व्दीप में नहीं जा सकते हैं ?
उत्तर -नहीं, वहाँ ऋद्धिधारी या केवली आदि भी नहीं जा सकते हैं क्योंकि ढाई व्दीप के आगे कोई भी मनुष्य जा ही नहीं सकते हैं।
प्रश्न –तब उस व्दीप में कौन से प्राणी रहते हैं ?
उत्तर -केवल एकेन्द्रिय जलकायिक आदि पंच स्थावर जीव ही वहाँ रहते हैं तथा जघन्य भोगभूमि की व्यवस्थानुसार वहाँ भोगभूमियाँ तिर्यंच जीव रहते हैं ऐसा तिलोयपण्णत्ति ग्रंथ में वर्णन है ।
प्रश्न –नंदीश्वर व्दीप में अंजनगिरि कितने हैं ?
उत्तर -नंदीश्वर व्दीप की चारों दिशाओं में १-१ अंजनगिरि हैं। जिनका रंग काला है और उन पर्वतों पर १-१ चैत्यालय बने हुए हैं।
प्रश्न –नंदीश्वर व्दीप में बावड़ियाँ कितनी हैं ?
उत्तर -वहाँ एक-एक दिशा में ४-४ बावड़ियाँ हैं अत: चारों दिशा संबंधी १६ बावड़ियाँ हो जाती हैं।
प्रश्न –नंदीश्वर व्दीप में दधिमुख पर्वत कितने हैं ?
उत्तर -बावड़ियों के बीच में १६ दधिमुख पर्वत हैं, जो सफेद वर्ण के हैं और उन सभी पर्वतों पर १-१ चैत्यालय बने हैं।
प्रश्न –नंदीश्वर व्दीप में रतिकर पर्वत कितने हैं ?
उत्तर -नंदीश्वर व्दीप की चारों दिशाओं में ८-८ रतिकर पर्वत होते हैं। एक-एक बावड़ियों के दो-दो कोणो में ये रतिकर पर्वत हैं। ये पीले स्वर्ण वर्ण के होते हैं तथा सभी मंदिरों पर १-१ जिनमंदिर बने हुए हैं।
प्रश्न –वहाँ पर बनी बावड़ियों के क्या नाम हैं ?
उत्तर -पूर्व दिशा की चार बावड़ियों के नाम-नंदा, नंदावती, नंदोत्तरा और नंदिघोषा। दक्षिण दिशा की ४ बावड़ियों के नाम-अरजा, विरजा, अशोका, वीतशोका। पश्चिम दिशा में विजया, वैजयंती, जयंती और अपराजिता ये चार बावड़ी हैं और उत्तर दिशा में रम्या, रमणीया, सुप्रभा और सर्वतोभद्रा ये चार बावड़ियाँ हैं।
प्रश्न –नंदीश्वर द्वीप में प्रतिमाएँ खड्गासन हैं या पद्मासन ?
उत्तर -पद्मासन प्रतिमाएँ वहाँ विराजमान रहती हैं।
प्रश्न –नंदीश्वर द्वीप की रचनाएँ वर्तमान में कहाँ–कहाँ बनी हैं ?
उत्तर -सम्मेदशिखर में, हस्तिनापुर में, जबलपुर में, दिल्ली में और महमूदाबाद (सीतापुर-उ.प्र.) में नंदीश्वर द्वीप की रचना बनी हुई हैं।
प्रश्न –नंदीश्वर द्वीप में मनुष्य क्यों नहीं जा सकते हैं ?
उत्तर -क्योंकि ढ़ाई द्वीप की सीमा पर स्थित मानुषोत्तर पर्वत के आगे मनुष्यों का आवागमन निषिद्ध है । ढाईद्वीप तक ही मनुष्यों का जन्म होता है आगे नहीं और ढ़ाई द्वीप में ही रहकर वे कर्मों को काटकर मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।