श्री रइधू कवि ने अपभृंश भाषा में आकिंचन्य धर्म के विषय में कहा है आविंवणु भावहु अप्पउ ज्झावहु, देहहु भिण्णउ णाणमउ। णिरूवम गय—वण्णउ, सुह—संपण्णउ परम अतिंदिय विगयभउ।। आिंकचणु वउ संगह—णिवित्ति, आिंकचणु वउ सुहझाण—सत्ति। आिंकचणु वउ वियलिय—ममत्ति, आिंकचणु रयण—त्तय—पवित्ति।। आिंकचणु आउंचियइ चित्तु पसरंतउ इंदिय—वणि विचित्तु। आिंकचणु देहहु णेह चत्तु, आिंकचणु जं…
Month: August 2020
उत्तम त्याग धर्म
श्री रइधू कवि ने अपभृंश भाषा में त्याग धर्म के विषय में कहा है चाउ वि धम्मंगउ तं जि अभंगउ णियसत्तिए भत्तिए जणहु। पत्तहं सुपवित्तहं तव—गुण—जुतहं परगइ—संबलु तुं मुणहु।। चाए अवगुण—गुण जि उहट्टइ, चाए णिम्मल—कित्ति पवट्टइ। चाए वयरिय पणमइ पाए, चाए भोगभूमि सुह जाए।। चाए विहिज्जइ णिच्च जि विणए, सुहवयणइं…
उत्तम तप धर्म
श्री रइधू कवि ने अपभृंश भाषा में तप धर्म के विषय में कहा णर—भव पावेप्पिणु तच्च मुणेप्पिणु खंचिवि पंचिंदिय समणु। णिव्वेउ पंमडि वि संगइ छंडि वि तउ किज्जइ जाएवि वणु।। तं तउ जिंह परगहु छंडिज्जइ, तं तउ जिंह मयणु जि खंडिज्जइ। तं तउ जिंह णग्गत्तणु दीसइ, तं तउ जिंह गिरिवंदरि…
उत्तम संयम धर्म
श्री रइधू कवि ने अपभृंश भाषा में संयम धर्म के विषय में कहा है संजमु जणि दुल्लहु तं पाविल्लहु जो छंडइ पुणु मूढमइ। सो भमइ भवावलि जर—मरणावलि किं पावेसइ पुणु सुगइ।। संजमु पंचदिय—दंडणेण, संजमु जि कसाय—विहंडणेण। संजमु दुद्धर—तव धारणेण, संजमु रस—चाय—वियारणेण।। संजमु उपवास—वजंभणेण, संजमु मण—पसरहं थंभणेण। संजमु गुरुकाय—किलेसणेण, संजमु परिगह—गह…
उत्तम सत्य धर्म
श्री रइधू कवि ने अपभृंश भाषा में सत्य धर्म के विषय में कहा है दय—धम्महु कारणु दोस—णवारणु इह—भवि पर—भवि सुक्खयरू। सच्चु जि वयणुल्लउ भुवणि अतुल्लउ बोलिज्जइ वीसासधरू।। सच्चु जि सव्वहं धम्महं पहाणु, सच्चु जि महियलि गरुउ विहाणु। सच्चु जि संसार—समुद्द—सेउ, सच्चु जि सव्वहं मण—सुक्ख—हेउ।। सच्चेण जि सोहइ मणुव—जम्मु, सच्चेण पवत्तउ…
उत्तम शौच धर्म
श्री रइधू कवि ने अपभृंश भाषा में शौच धर्म के विषय में कहा है सउच जि धम्मंगउ तं जि अभंगउ भिण्णंगउ उवओगमउ। जर—मरण—वणासणु तिजगपयासणु झाइज्जइ अह—णिसि जिधुउ।। धम्म सउच्चु होइ—मण सुद्धिएँ, धम्म सउच्चु वयण—धण—गिद्धिएँ। धम्म सउच्चु कसाय अहावें, धम्म सउच्चु ण लिप्पइ पावें।। धम्म सउच्चु लोहु वज्जंतउ, धम्म सउच्चु सुतव—पहि…
उत्तम आर्जव धर्म
श्री रइधू कवि ने अपभृंश भाषा में आर्जव धर्म के विषय में कहा है धम्महु वर—लक्खणु अज्जउ थिर—मणु दुरिय—वहंडणु सुह—जणणु। तं इत्थ जि किज्जइ तं पालिज्जइ, तं णि सुणिज्जइ खय—जणणु।। जारिसु णिजय—चित्ति चितिज्जइ, तारिसु अण्णहं पुजु भासिज्जइ। किज्जइ पुणु तारिसु सुह—संचणु, तं अज्जउ गुण मुणहु अवंचणु।। माया—सल्लु मणहु णिस्सारहु, अज्ज…
उत्तम मार्दव धर्म
श्री रइधू कवि ने अपभृंश भाषा में मार्दव धर्म के विषय में कहा है मद्दउ—भाव—मद्दणु माण—णिंकदणु दय—धम्महु मूल जि विमलु। सव्वहं—हययारउ गुण—गण—सारउ तिसहु वउ संजम सहलु।। मद्दउ माण—कसाय—बिहंडणु, मद्दउ पंचिंदिय—मण—दंडणु। मद्दउ धम्मे करुणा—बल्ली, पसरइ चित्त—महीह णवल्ली।। मद्दउ जिणवर—भत्ति पयासइ, मद्दउ कुमइ—पसरूणिण्णासइ। मद्दवेण बहुविणय पवट्टइ—मद्दवेण जणवइरू उहट्टइ।। मद्दवेण परिणाम—विसुद्धी, मद्दवेण विहु…
उत्तम क्षमा धर्म
श्री रइधू कवि ने अपभृंश भाषा में क्षमा धर्म के विषय में कहा है उत्तम—खम मद्दउ अज्जउ सच्चउ, पुणु सउच्च संजमु सुतउ। चाउ वि आिंकचणु भव—भय—वंचणु बंभचेरू धम्मु जि अखउ।। उत्तम—खम तिल्लोयहँ सारी, उत्तम—खम जम्मोदहितारी। उत्तम—खम रयण—त्तय—धारी, उत्तम—खाम दुग्गइ—दुह—हारी।। उत्तम—खम गुण—गण—सहयारी, उत्तम खम मुणिविद—पयारी। उत्तम—खम बुहयण—चन्तामणि, उत्तम—खम संपज्जइ थिर—मणि।। उत्तम—खम…