श्री गौतमस्वामी विरचित पाक्षिक प्रतिक्रमण में— ‘से अभिमद जीवाजीव-उवलद्धपुण्णपाव-आसवसंवरणिज्जर-बंधमोक्खमहिकुसले।।।’’[१] जीव अजीव पुण्य पाप आस्रव संवर निर्जरा बंध मोक्ष। ये क्रम है। यही क्रम षट्खण्डागम धवला टीका पुस्तक १३ में है। ‘‘जीवाजीव- पुण्ण-पाव-आसव-संवर-णिज्जरा-बंध-मोक्खेहि। णवहिं पयत्थेहि वदिरित्तमण्णं ण किं पि अत्थि, अणुवलंभादो।।’अर्थात् जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्ष…
Month: May 2018
ऋग्वेद मूलत: श्रमण ऋषभदेव प्रभावित कृति है!
ऋग्वेद मूलत: श्रमण ऋषभदेव प्रभावित कृति है! विश्व के विद्वानों, इतिहासकारों एवं पुरातात्विकों के मतानुसार इस धरती पर ईसा से लगभग ५०००—३००० वर्ष पूर्व के काल में सभ्यता अत्यन्त उन्नति पर थी। मिस्र देश के पिरामिड और ममी, स्पिक्स, चीन की ममी, ग्रीक के अवशेष, बेबीलोन, भारत के वेद, मोहनजोदड़ों—हड़प्पा…
दिगम्बर साधु
प्र. दिगम्बर साधुओ के बारे में उनकी नग्नता को लेकर कई भ्रांतियाँ है। एक तो यह कि भाई समाज में कोई तो नग्न नहीं रहता है, फिर यह शख्स नग्न क्यों रहता है ? इसे नग्न रहने का क्या अधिकार है ? जैन तो जानते हैं कि यह एक परंपरा…