कहा है कि पानी में डूबने के बाद कोई भी व्यक्ति अधिक से अधिक 3 बार ही ऊपर आता है, उसमें बच जाये, तो ठीक, नहीं तो फिर वह पूर्णरूपेण डूब जाता है।शास्त्रों में आता है कि हर जीव (मनुष्य) निगोद से त्रस पर्याय में अधिक से अधिक दो हजार…
Month: December 2017
जैनधर्म प्रश्नोत्तरमाला-8
प्रश्न –रक्षाबंधन पर्व कहाँ से प्रारंभ हुआ है ? उत्तर -हस्तिनापुर तीर्थ से इस पर्व का शुभारंभ हुआ है । प्रश्न –यह पर्व किसकी स्मृति से चला ? उत्तर -सात सौ दिगम्बर महामुनियों के ऊपर हुए अग्नि उपसर्ग को दूर करने के उपलक्ष्य में यह पर्व प्रारंभ हुआ है । प्रश्न –वे…
आचार्य कुन्दकुन्द (Acharya Kundkund)
आचार्य कुन्दकुन्द विक्रम की प्रथम शताब्दी के आचार्यरत्न माने जाते हैं। जैन परम्परा में भगवान् महावीर और गौतम गणधर के बाद कुन्दकुन्द का नाम लेना मंगलकारक माना जाता है – मंगलं भगवान् वीरों मंगलं गौतमो गणी। मंगलं कुन्दकुन्दाद्यो जैनधर्मोऽस्तु मंगलम्।। यह श्लोक दिगम्बर परम्परा में शास्त्र स्वाध्याय से पूर्व बोला…
मुनिराज गुरुदत्त
राजा गुरुदत्त हस्तिनापुर का स्वामी था जो न्यायपूर्वक प्रजा का पालन करता था। एक दिन प्रजा से यह सुनकर कि एक व्याघ्र प्रतिदिन नगर में आता है और जीवों का विध्वंस कर बड़ा दुख देता है, राजा गुरुदत्त को बड़ा क्रोध आया। वह शीघ्र सेना लेकर द्रोणीमान पर्वत पर, जहाँ…
चौंतीस अतिशय एवं आठ प्रातिहार्य
तिलोयपण्णत्ति ग्रंथ में श्री यतिवृषभाचार्य ने ३४ अतिशय एवं ८ प्रातिहार्य का वर्णन किया है— लोक और अलोक को प्रकाशित करने के लिए सूर्य के समान भगवान् अरहन्त देव उन सिंहासनों के ऊपर आकाशमार्ग में चार अंगुल के अन्तराल से स्थित रहते हैं।। ८९५।। (१) स्वेदरहितता, (२) निर्मलशरीरता, (३) दूध…
विहरमान बीस तीर्थंकर और उनकी बीस विशेषतायें
1) भरत ऐरावत क्षेत्र की तरह महाविदेह क्षेत्र में एक के बाद एक ऐसे चौबीस तीर्थंकरों की व्यवस्था नहीं है। महाविदेह क्षेत्र की पुण्यवानी अनंतानंत और अद्भुत है. वहां सदाकाल बीस तीर्थंकर विचरते रहते हैं, उनके नाम भी हमेशा एक सरीखे ही रहते हैं; इसलिए उन्हें जिनका कभी भी वियोग…
दुनिया के ‘दस’ आश्चर्य
दुनिया के ‘दस’ आश्चर्य आपने विश्व के अनेक आश्चर्यों के बारे में सुना होगा, सात आश्चर्यों के बारे में तो संशय अवश्य ही सुना होगा; किन्तु वास्तव में देखा जाए तो वे सभी आश्चर्य क्षणभंगुर हैं, एक स्थूल अपेक्षा से ही ‘आश्चर्य’ कहे जा सकते हैं, अन्यथा उनमें कुछ भी…
पल्य-सागर का स्वरूप
कुलकरों की, देव-नारकियों की अवगाहना के प्रमाण में जो ‘धनुष’ शब्द आया है और आयु तथा अन्तराल में ‘पल्य’ शब्द का प्रयोग आया है, अब उनको समझने के लिए धनुष और पल्य को बनाने की प्रक्रिया को बतलाते हैं- अंगुल, धनुष, पल्य आदि की प्रक्रिया-पुद्गल के एक अविभागी टुकड़े को…