अध्यात्म विकास के आयाम गुणस्थान और परिणाम गुणस्थान एवं ध्यान गुणस्थान का संबंध गुण से है सहभुवो गुणा[१] साथ में होने वाले गुण है या जिनके द्वारा एक द्रव्य की दूसरे द्रव्य से पृथक् पहचान होती है वह गुण है। गुण्यते पृथक्क्रियते द्रव्यं द्रव्याद्यैस्ते गुणा:।[२] अर्थात् जिसके द्वारा द्रव्य की…
Month: October 2017
णमोकार महामंत्र एवं चत्तारिमंगल पाठ
णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं। णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं।। चत्तारि मंगलं-अरिहंत मंगलं, सिद्ध मंगलं, साहु मंगलं, केवलि पण्णत्तो धम्मो मंगलं। चत्तारि लोगुत्तमा-अरिहंत लोगुत्तमा, सिद्ध लोगुत्तमा, साहु लोगुत्तमा, केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमा। चत्तारि सरणं पव्वज्जामि-अरिहंत सरणं पव्वज्जामि, सिद्ध सरणं पव्वज्जामि, साहु सरणं पव्वज्जामि, केवलि पण्णत्तो धम्मो सरणं पव्वज्जामि। ह्रौं…
जैनधर्म प्रश्नोत्तरमाला – 2
प्रश्न -अनादिनिधन पर्व कौन-कौन से हैं ? उत्तर -सोलहकारण पर्व, दशलक्षण पर्व, आष्टान्हिका पर्व। प्रश्न -हस्तिनापुर से संबंधित कौन-कौन सी ऐतिहासिक घटनाएँ हैं ? उत्तर -१. भगवान ऋषभदेव ने यहाँ प्रथम बार इक्षुरस का आहार लिया था। २. शांति, कुंथु, अरहनाथ इन तीन तीर्थंकरों के चार-चार कल्याणक हुए। ३. कौरवों-पांडवों व्दारा…
सबसे बड़ा जैन ग्रंथ षट्खण्डागम
श्री धरसेनाचार्य जी के शिष्य और श्रुतपरम्परा के प्रवर्तक आचार्य पुष्पदन्त और आचार्य भूतबलि जी मुनिराजों द्वारा ईसा की पहली शताब्दी में षट्खण्डागम ग्रंथ की रचना की गई। इस ग्रंथ के प्रथम पाँच खण्ड अर्थात् जीवस्थान, क्षुद्रकबंध, बंधस्वामित्व, वेदनाखण्ड और वर्गणा खण्ड, इनमें ६००० श्लोकप्रमाण सूत्र हैं। छठवें खण्ड को…
Vardhmana Mahaveer in Constitution of India–भारतीय संविधान में भगवान वर्धमान
भारतीय संविधान की सुलिखित प्रति के ६३वें पृष्ठ पर अंकित जैनों के २४ वे तीर्थंकर वर्धमान—महावीर की तप में लीन मुद्रा का एक चित्र Vardhmana Mahavir, the 24th Tirthankara in a meditative posture, another illustration form the Calligraphed edition of the Constitution of India. Jainism is another stream of spiritual…
“ओम” Om explained by Acharya Shree
जैन— परम्परासम्मत ‘ओम’ का प्रतीक चिन्ह अरहंता असरीरा आइरिया तह उवज्झया मुणिणो। पढमक्खरणिप्पणो ओंकारो पंचपरमेष्ठी।। जैनागम में अरिहंन्त, सिद्ध आचार्य, उपाध्याय एवं साधु यानी मुनिरूप पाँच परमेष्ठी ही आराध्य माने गये हैं। इनके आद्य अक्षरों को परस्पर मिलाने पर ‘ओम्’ ‘ओं’ बन जाता है। यथा, इनमें से पहले परमेष्ठी ‘अरिहंत’…
Earth in Jainism
भू-भ्रमण का खण्डन (श्लोकवार्तिक तीसरी अध्याय के प्रथम सूत्र की हिन्दी से) कोई आधुनिक विद्वान कहते हैं कि जैनियों की मान्यता के अनुसार यह पृथ्वी “Earth” वलयाकार चपटी गोल नहीं है। किन्तु यह पृथ्वी “Earth” गेंद या नारंगी के समान गोल आकार की है। यह भूमि स्थिर भी नहीं है। हमेशा…
Samavsaran
समवसरण की महिमा श्रीमते वर्धमानाय, नमो नमित विद्वषे। यज्ज्ञानान्तर्गतं भूत्वा, त्रैलोक्यं गोष्पदायते।। जो भव्य जीव हैं, जो महापुरुष संसार में रहते हुए सम्यग्दृष्टि बन करके सोलहकारण भावनाओं को भाते हैं। तीर्थंकर केवली भगवन्तों के पादमूल में या श्रुतकेवली के पादमूल में दर्शनविशुद्धि आदि सोलहकारण भावनाओं का चिन्तन करते हैं, उस…
आगम में वर्ण-गोत्र आदि की स्थिति
आगम के आलोक में वर्ण-गोत्र आदि की स्थिति इस हुण्डावसर्पिणी काल में भगवान आदिनाथ ने जिस समय वर्णों का विधान किया था, उस समय जीवों के पिण्ड की अशुद्धता रूप संकरता नहीं थी अर्थात् पिण्ड शुद्ध ही था। शनै: शनै: जब विषयासक्ति और विलासिता बढ़ी तो विवेकहीन कामान्ध मानवों ने…
इस जंबूद्वीप में हम कहाँ हैं ?
यह भरतक्षेत्र जंबूद्वीप के १९० वें भाग (५२६-६/१९ योजन) प्रमाण है। इसके छह खंड में जो आर्यखंड है उसका प्रमाण लगभग निम्न प्रकार है। दक्षिण का भरतक्षेत्र २३८-३/१९ योजन का है। पद्मसरोवर की लम्बाई १००० योजन है तथा गंगा-सिंधु नदियां ५-५ सौ योजन पर्वत पर पूर्व-पश्चिम बहकर दक्षिण में मुड़ती…
द्वादशांग जिनवाणी–Dwadshang Jinwani
द्वादशांग जिनवाणी को ग्रंथरूप में नहीं लिखा जा सकता (दिगम्बर जैन परम्परा में भगवान महावीर के बाद ६८३ वर्ष तक ही द्वादशांग श्रुत एवं उसके ज्ञाता आचार्य रहे हैं) जैन वाङ्गमय द्वादशांगरूप है और दिगम्बर जैन परम्परा के अनुसार आज द्वादशांग उपलब्ध नहीं हैं क्योंकि द्वादशांग लिखे ही नहीं जा…
Pandit Ashadhar–पं.आशाधर
पं. आशाधर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व अभिषेक जैन १२वीं श. ईसवी के बहुश्रुत एवं प्रतिभाशाली जैन विद्वान पं. आशाधर जी ने वांगमय की श्री वृद्धि में अतुलनीय योगदान दिया है। प्रस्तुत लेख में लेखक ने उनके जीवन के विविध पहलुओं की विेवेचना के साथ ही उनकी प्रकाशित एवं अप्रकाशित कृतियों का…