अष्टाह्निक पर्व : – इस नंदीश्वर द्वीप में प्रत्येक वर्ष आषाढ़, कार्तिक और फाल्गुन मास में शुक्लपक्ष की अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक चारों प्रकार के देवगण आते हैं और भक्ति से अखण्ड पूजा करते हैं।
उस समय दिव्य विभूति से विभूषित सौधर्म इन्द्र हाथ में श्रीफल नारियल को लेकर भक्ति से ऐरावत हाथी पर चढ़कर आता है।
उत्तम रत्नाभरणों से विभूषित ईशान इन्द्र भी उत्तम हाथी पर चढ़कर हाथ में सुपाड़ी फलों के गुच्छे को लिए हुए भक्ति से वहाँ पहुँचता है।
कुण्डलों से विभूषित और हाथ में आम्रफलों के गुच्छे को लिए हुए सानत्कुमार इन्द्र भी भक्ति से युक्त होता हुआ उत्तम सिंह पर चढ़कर यहाँ आता है।
विविध प्रकार की शोभा को प्राप्त माहेन्द्र भी श्रेष्ठ घोड़े पर चढ़कर हाथ में केलों को लिए हुए भक्ति से यहाँ आता है।
धवल हंस पर आरुढ़, निर्मल शरीर से सुशोभित और भक्ति से युक्त ब्रह्मेन्द्र उत्तम केतकी पुष्प को हाथ में लेकर आता है।
उत्तम चँवर और विविध छत्र से सुशोभित और फूले हुए कमल को हाथ में लिए हुए ब्रह्मोत्तर इन्द्र भी क्रौंच पक्षी पर आरुढ़ होकर यहाँ आता है।
कुण्डल और केयूर आदि आभरणों से दैदीप्यमान और भक्ति से भरित शुव्रेंद्र उत्तम चक्रवाक पक्षी पर आरुढ़ होकर सेवन्ती पुष्प को हाथ में लिए हुए यहाँ आता है।
दिव्य विभूति से विभूषित, उत्तम एवं विविध प्रकार के फूलों की माला को हाथ में लिए हुए महाशुव्रेन्द्र भी तोता पक्षी पर चढ़कर भक्तिवश यहाँ आता है।
कोयल वाहन रूप विमान पर आरुढ़ होकर, उत्तमरत्नों से अलंकृत शतार इन्द्र नील कमल को हाथ में लेकर भक्ति से प्रेरित हुआ यहाँ आता है।
गरुड़ विमान पर आरुढ़ होकर सहस्रार इन्द्र भी अनार फलों के गुच्छों को हाथ में लेकर जिन चरणों की भक्ति में अनुरक्त हुआ यहाँ आता है।
विहगाधिप (गरुड़पक्षी) पर आरुढ़ होकर पनस फल के गुच्छे को हाथ में लिए हुए आनतेन्द्र भी उत्तम दिव्य विभूति के साथ यहाँ आता है।
उत्तम आभरणों से मण्डित और तुम्बरु फल के गुच्छे को हाथ में लिए हुए प्राणतेन्द्र भी भक्तिवश पद्म विमान पर आरुढ़ होकर यहाँ आता है।
पके हुए गन्ने को हाथ में लेकर और विचित्र कुमुद विमान पर चढ़कर आरणेन्द्र भी विविध अलंकारों से अलंकृत हुआ यहाँ आता है।
कटक, अंगद, मुकुट एवं हार से संयुक्त और चन्द्रमा के समान धवल चँवर हाथ में लिए हुए अच्युतेन्द्र उत्तम मयूर वाहन पर चढ़कर यहाँ आता है।१
(ये नाना प्रकार के मयूर, कोयल, तोता आदि वाहन बताये हैं वे सब आभियोग्य जाति के देव उस प्रकार के वाहन का रूप बना लेते हैं चूँकि वहाँ पशु-पक्षी नहीं हैं।)
नाना प्रकार की विभूति से सहित अनेक फल व पुष्पमालाओं को हाथों में लिए हुए और अनेक प्रकार के वाहनों पर आरुढ़ ज्योतिषि, व्यंतर एवं भवनवासी देव भी भक्ति से संयुक्त होकर यहाँ आते हैं।
इस प्रकार ये चारों निकाय के देव नंदीश्वर द्वीप के दिव्य जिनमंदिरों में आकर नाना प्रकार की स्तुतियों से दिशाओं को मुखरित करते हुए प्रदक्षिणायें करते हैं।