यह भरतक्षेत्र जंबूद्वीप के १९० वें भाग (५२६-६/१९ योजन) प्रमाण है। इसके छह खंड में जो आर्यखंड है उसका प्रमाण लगभग निम्न प्रकार है। दक्षिण का भरतक्षेत्र २३८-३/१९ योजन का है। पद्मसरोवर की लम्बाई १००० योजन है तथा गंगा-सिंधु नदियां ५-५ सौ योजन पर्वत पर पूर्व-पश्चिम बहकर दक्षिण में मुड़ती हैं। यह आर्यखंड उत्तर-दक्षिण में २३८ योजन चौड़ा है। पूर्व-पश्चिम में १०००± ५००±५००·२०००योजन लम्बा है। इनको आपस में गुणा करने से २३८²२००० · ४७,६००० योजन प्रमाण आर्यखंड का क्षेत्रफल हो जाता है। इसके मील बनाने से ४७,६००० ² ४००० · १९०,४०,००,००० (एक सौ नब्बे करोड़ चालीस लाख) मील प्रमाण क्षेत्रफल हो जाता है। इस आर्यखण्ड के मध्य में अयोध्या नगरी है। इस अयोध्या के दक्षिण में ११९ योजन की दूरी पर लवण समुद्र की वेदी है और उत्तर की तरफ इतनी ही दूर पर विजयार्ध पर्वत की वेदिका है। अयोध्या से पूर्व में १००० योजन की दूरी पर गंगानदी की तटवेदी है अर्थात् आर्यखंड की दक्षिण दिशा में लवण समुद्र, उत्तर दिशा में विजयार्ध, पूर्व दिशा में गंगा नदी एवं पश्चिम दिशा में सिंधु नदी हैं,ये चारो आर्यखण्ड की सीमारूप हैं।
अयोध्या से दक्षिण में ४,७६००० मील (चार लाख छिहत्तर हजार मील) जाने से लवण समुद्र है और उत्तर में, ४,७६००० मील जाने से विजयार्ध पर्वत है। उसी प्रकार अयोध्या से पूर्व में ४०,००००० (चालीस लाख) मील दूर पर गंगानदी तथा पश्चिम में इतनी ही दूर पर सिंधु नदी है। आज का सारा विश्व इस आर्यखंड में है। हम और आप सभी इस आर्यखंड में ही भारतवर्ष में रहते हैं।
अढ्भुद … हम ऐसे जगह पर रहते है … जैन धर्म का ज्ञान सचमुच बहूत विस्तार से है …l
Such m jaidharm bhut hi vyapak hu