तत्वार्थ सूत्र प्रश्नोत्तरी–द्वितीय अध्याय

प्र.. जीव के असाधारण भाव (स्वतत्व) के नाम बताओ ?
उत्तर— १. औपशमिक, २. क्षायिक, ३.मिश्र, ४. औदयिक और पारिणामिक ये ५ भाव जीव के स्वतत्व अथवा असाधारण भाव है।

प्र.. औपशमिक भाव से क्या आशय है ?
उत्तर— कर्मों के उपशम से आत्मा का होने वाला भाव औपशमिक भाव है।

प्र.. क्षायिक भाव किसे कहते हैं ?
उत्तर— कर्मों के क्षय से जो भाव होता है वह क्षायिक भाव है।

प्र.. मिश्र भाव किसे कहते हैं ?
उत्तर— कर्मों के क्षयोपशम से जो भाव होता है वह क्षयोपशमिक भाव कहलाता है।

प्र.. औदयिक भाव किसे कहते हैं ?
उत्तर— कर्मों के उदय से जो भाव होते हैं उसे औदयिक भाव कहते है ।

प्र.. पारिणामिक भाव किसे कहते हैं ?
उत्तर— जो भाव कर्मों के उपशम, क्षय, क्षयोपशम और उदय की अपेक्षा न रखते हुए आत्मा का स्वभाव मात्र हो उसे पारिणामिक भाव कहते है ।

प्र.. सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि के कौनकौन से भाव होते है ?
उत्तर— (१) सम्यग्दृष्टि के क्षायिक और औपशमिक भाव होते है। (२) मिथ्यादृष्टि जीव के क्षायोपशमिक (मिश्र), औदयिक और पारिणामिक भाव होते है।

प्र.. भाव का क्या अर्थ है और इनका जीव के साथ क्या संबंध है ?
उत्तर— भाव का अर्थ पर्याय है । जीव आधार और भाव आधेय है।

प्र.. भावों के उत्तर भेद कितने है ?
उत्तर—पांच भावों के उत्तरभेद ५३ है। इनमें औपशमिक के दो, क्षायिक के अठारह, औदयिक के इक्कीस तथा पारिणामिक भाव के तीन भेद है ।

प्र.१०. औपशमिक भाव के दो भेद कौन से है ?
उत्तर— औपशमिक सम्यक्तव, औपशमिक चारित्र।

प्र.११. क्षायिक भाव के भेद कौन से है ?

उत्तर— क्षायिक ज्ञान, क्षायिक दर्शन, क्षायिक दान, क्षायिक लाभ, क्षायिक उपभोग, क्षायिक वीर्य, क्षायिक सम्यक्त्व, क्षायिक चारित्र।

प्र.१२. क्षायोपशमिक (मिश्र) भाव के अठारह भेद कौन से है ?
उत्तर— चार ज्ञान— मति ज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन: पर्यय ज्ञान। तीन अज्ञान— कुमति, कुश्रुति, कुअवधि। पांच लब्धियाँ — दान, लाभ, भोग, उपभोग, वीर्य|

प्र.१३. औदयिक भाव के २१ भेद कौन से है ?
उत्तर— चार गति, चार कषाय, तीन लिंग, मिथ्यादर्शन, अज्ञान, असंयम और असिद्धत्व तथा पीत, पद्म, शुक्ल, कृष्ण, नील और कापोत ये छह लेश्यायें मिलाकर कुल २१ औदयिक भाव है ।

प्र.१४. पारिणामिक भाव के भेद बताईये ?
उत्तर— जीवत्व, भव्यत्व, अभव्यत्व ये तीन पारिणामिक भाव है ।

प्र.१५. जीवत्व से क्या आशय है ?
उत्तर— जिसमें ज्ञान — दर्शन — चेतना पाई जाये वह जीवत्व भाव है।

प्र.१६. भव्य से आप क्या जानते हैं ?
उत्तर— जिनमें सम्यग्दर्शन , सम्यग्ज्ञान, सम्यक चारित्र प्रगट करने की योग्यता हो वह भव्य है।

प्र.१७. अभव्य का अर्थ क्या है ?
उत्तर— जिसमें रत्नत्रय प्रगट करने की योग्यता नहीं है वह अभव्य है।

प्र.१८. क्या अभव्य जीव तीर्थराज सम्मेद शिखरजी की वंदना कर सकता है ? आप भव्य है या अभव्य
उत्तर— हम भव्य जीव है, अभव्य जीव शिखर जी की वंदना नहीं कर सकता है।

प्र.१९. भाव रहित कौन सा जीव होता है ?सबसे अधिक सबसे कम भाव कौन से है ?
उत्तर— कोई भी जीव भाव रहित नहीं होता है । सबसे अधिक भाव औदयिक तथा सबसे कम भाव पारिणामिक भाव है।

प्र.२०. एक जीव के एक काल में कितने भाव हो सकते है ?
उत्तर— एक जीव के एक काल में १७ भाव हो सकते है ।

प्र. २१. जीव का लक्षण क्या है ?
उत्तर—उपयोगो जीव लक्षणम्। जीव का लक्षण उपयोग है।

प्र. २२. उपयोग से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर— उपयोग का अर्थ है आत्मा के भाव जो कि अंतरंग और बाह्य दोनों प्रकार के निमित्त से होते हैं।

प्र. २३. उपयोग के कितने भेद हैं ?
उत्तर—उपयोग के २ भेद हैं—सद्विविधोऽष्ट चतुर्भेद: अर्थात् उपयोग, दो चार और आठ प्रकार का होता है।

प्र. २४. उपयोग के दो भेद कौन से हैं ?
उत्तर—उपयोग के दो भेद निम्नानुसार हैं—(१) ज्ञानोपयोग (२) दर्शनोपयोग।

प्र. २५. उपयोग चार प्रकार का भी होता है कैसे ?
उत्तर—दर्शनोपयोग के चार भेदों के आधार पर उपयोग चार प्रकार का होता है—(१) चक्षुदर्शन (२) अचक्षुदर्शन (३) अवधिदर्शन (४) केवलदर्शन।

प्र. २६. उपयोग के यदि प्रकार कहें तो वे कौन से हैं ?
उत्तर—ज्ञानोपयोग के भेदों के अनुसार उपयोग ८ प्रकार का होता है—(१) मतिज्ञान (२) श्रुतज्ञान (३) अवधिज्ञान (४) मन: पर्ययज्ञान (५) केवलज्ञान (६) कुमति (७) कुश्रुति (८) कुअवधिज्ञान।

प्र. २७. जीव के कितने भेद हैं ?
उत्तर—जीव के दो भेद हैं—संसारिणो मुक्ताश्च। संसारी और मुक्त इस तरह जीव के दो भेद हैं।

प्र. २८. संसारी जीव किसे कहते हैं ?
उत्तर—कर्म सहित संसार में रहने वाले जीव संसारी जीव कहलाते हैं।

प्र. २९. मुक्त जीव किसे कहते हैं ?
उत्तर—अष्ट कर्मों से रहित वे जीव जो जन्म मरण के बंधन से मुक्त हैं मुक्त जीव कहलाते हैं।

प्र. ३०. संसारी जीव कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर—संसारी जीव समनस्कामनस्का: सूत्रानुसार मन सहित और मनरहित दो प्रकार के होते हैं।

प्र. ३१. मन सहित और मनरहित जीव क्या कहलाते हैं ?

उत्तर—मनसहित अर्थात् संज्ञी अथवा सैनी जव तथा मनरहित अर्थात् असंज्ञी अथवा असैनी जीव कहलाते हैं।

प्र. ३२. संसारी जीवों के कितने भेद हैं ?
उत्तर—संसारी जीव त्रस और स्थावर के भेद से दो प्रकार हैं, इसका सूत्र हैं—संसारिणस्त्रसस्थावरा:।

प्र. ३३. स्थावर जीव किसे कहते हैं।
उत्तर—स्थावर नामकर्म के उदय से जीव की अवस्था विशेष को स्थावर जीव कहते हैं।

प्र. ३४. स्थावर जीवों के भेद बताईये।
उत्तर—पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतय: स्थावरा:। पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक तथा वनस्पतिकायिक इस तरह स्थावर जीव के पांच भेद हैं।

प्र. ३५. त्रस जीव कौनकौन से हैं ?
उत्तर—द्वीन्द्रियादयस्त्रसा: दो इंद्रिय, तीन इंद्रिय, चार इंद्रिय तथा पांच इन्द्रिय जीव त्रस जीव कहलाते हैं।

प्र. ३६. इंद्रिया कितनी होती हैं ?
उत्तर—पंचेन्द्रियाणि। समस्त इंद्रिया पांच हैं—स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु, कर्ण।

प्र. ३७. इंद्रियां किसे कहते हैं ?
उत्तर—जिनके द्वारा जीव की पहचान हो उन्हें इंद्रियां कहते हैं।

प्र. ३८. इंद्रियां मूलरूप से कितने प्रकार की हैं ?
उत्तर—द्विविधानि अर्थात् इंद्रियां दो प्रकार की होती हैं। पांचों इंद्रियों को दो भागों में रखा जाता है वे दो प्रकार हैं—(१) द्रव्येन्द्रिय और (२) भावेन्द्रिय।

प्र. ३९. द्रव्येन्द्रिय का स्वरूप बताईये।
उत्तर—निवृत्ति और उपकरण द्रव्येन्द्रिय है जैसा कि सूत्र में बताया गया है—निर्वत्युपकरणे द्रव्येन्द्रियम।

प्र. ४०. निवृत्ति और उपकरण से आप क्सा समझते हैं ?
उत्तर—कर्मों के द्वारा जिसकी रचना होती है वह निवृत्ति तथा जो निवृत्ति का उपकार करें उसे उपकरण कहते हैं।

प्र. ४१. इंद्रियों के मूल भेद कितने हैं ?

उत्तर—द्विविधानि पांचों इंद्रियाँ दो—दो प्रकार की होती है—(१) द्रव्येन्द्रिय, (२) भावेन्द्रिय।

प्र. ४२. द्रव्येन्द्रिय का स्वरूप बताइये।
उत्तर—निर्वत्युपकरणे द्रव्येन्द्रियम् निवृत्ति और उपकरण द्रव्येन्द्रिय है।

प्र. ४३. निवृत्ति से क्या आशय है ?
उत्तर—पुद्गल विपाकी नामकर्म के उदय से रची गई नियत आकार वाली रचना विशेष को निवृत्ति कहते हैं।

प्र. ४४. उपकरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर—जो निवृत्ति का उपकार करे उसे उपकरण कहते हैं।

प्र. ४५. भावेन्द्रिय किसे कहते हैं ?
उत्तर—लब्धि और उपयोग को भावेन्द्रिय कहते हैं।

प्र. ४६. लब्धि से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर—लब्धि का अर्थ है प्राप्त होना। इसका सार्थक अर्थ है—आत्मा में ज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से होने वाली अर्थ ग्रहण करने की शक्ति को लब्धि कहते हैं।

प्र. ४७. उपयोग किसे कहते हैं ?
उत्तर—अर्थ ग्रहण करने के प्रति आत्मा के उद्यम, प्रवर्तन या व्यापार को उपयोग कहते हैं।

प्र. ४८. पांच इंद्रियों के नाम बताईये।
उत्तर—स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और कर्ण अथवा श्रोत्र।

प्र. ४९. पांचों इन्द्रियों के लक्षण क्या है ?
उत्तर—जो छुआ जाता है, स्पर्श किया जाता है वह स्पर्श है। जो स्वाद को प्राप्त होता है वह रस है। जिसके द्वारा गंध महसूस की जाये वह घ्राण है, जिसके द्वारा देखा जाता है वह चक्षु है तथा जिसके द्वारा सुना जाये वह कर्ण इंद्रिय है।

प्र. ५०. इंद्रियों के विषय कौनकौन से हैं ?
उत्तर—‘‘स्पर्शरसगंधवर्णशब्दास्तदर्था:।? ’’ स्पर्श, रस, गंध, वर्ण और शब्द ये क्रमश: स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और कर्ण के विषय हैं।

प्र. ५१. पांचों इंद्रियों के आकार कैसे हैं ?

उत्तर—स्पर्शन इंद्रिय—अनेक आकार हैं। रसना इंद्रिय—खुरपे के समान आकार है। घ्राण इंद्रिय—तल के पुष्प के समान आकार है। चक्षु इंद्रिय—मसूर के समान आकार है। कर्ण इंद्रिय—जव की नली के समान आकार है।

प्र. ५२. मन का विषय क्या है ?
उत्तर—श्रुतमनिन्द्रियस्य। श्रुत मन का विषय है।

प्र. ५३. स्पर्शन इंद्रिय का स्वामी कौन हैं ?
उत्तर—‘‘वनस्पत्यन्तानामेकम्।’’ वनस्पतिकायिक तक के जीवों की एक स्पर्शन इंद्रिय होती है।

प्र. ५४. दो इंद्रिय से पांच इंद्रिय तक के स्वामी कौनकौन हैं ?
उत्तर—लट के स्पर्शन, रसना—दो इंद्रिय। चीटीं के स्पर्शन, रसना घ्राण—तीन इंद्रिय। भंवरा के स्पर्शन, रसना, घ्राण तथा चक्षु, चार इंद्रिय मनुष्य देव, नारकी, पंचेन्द्रिय तिर्यंच के स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु, कर्ण पांचों इंद्रियाँ होती है।

प्र. ५५. पंचेन्द्रिय जीव के कितने भेद हैं ?
उत्तर—पंचेन्द्रिय जीव के २ भेद हैं—(१) संज्ञी (२) असंज्ञी।

प्र. ५६. संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव कैसे होते हैं ?
उत्तर—संज्ञिन: समनस्का: मन सहित जीव संज्ञी होते हैं।

प्र. ५७. असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीव कौन से होते हैं ?
उत्तर—मनरहित जीव असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीव होते हैं। एकेन्द्रिय से चार इंद्रिय तक के समस्त जीव तथा सम्मूर्च्छनोत्पन्न कोई तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीव भी असंज्ञी होते हैं।

प्र. ५८. विग्रहगति में कौन सा योग होता है ?
उत्तर—विग्रह का अर्थ शरीर है। शरीर के लिये जो गति होती है उसे विग्रह गति कहते हैं।

प्र. ५९. विग्रहगति में कौन सा योग होता है ?
उत्तर—‘‘विग्र हगतौ कर्मयोग:’’ विग्रहगति में कर्मयोग होता है।

प्र. ६०. कर्मयोग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर—कर्म के निमित्त से जो योग होते हैं वह कर्मयोग है यह विग्रहगति में होता है।

प्र.६१. श्रेणी किसे कहते है ?

उत्तर— लोक के मध्य से लेकर ऊपर नीचे और तिरछे क्रम से स्थित आकार प्रदेशों की पंक्ति को श्रेणी कहते है ।

प्र.६२. गति किसके अनुसार होती है ?
उत्तर— अनुश्रेणि गति: श्रेणी के अनुसार होती है । ऊपर की ओर हो तो देवगति, नीचे की ओर हो तो नरक तथा मध्य में रहे तिरछे क्रम से रहे तो मनुष्य व तिर्यंच गति होती है ।

प्र.६३. अनुश्रेणी से क्या आशय है ?
उत्तर— अनुश्रेणी का अर्थ श्रेणी की आनुपूर्वी से होता है ।

प्र.६४. मुक्त जीवों की गति कौन सी होती है ?
उत्तर— अविग्रहा जीवस्य । मुक्त जीवों की गति विग्रह रहित अर्थात् सीधी होती है।

प्र.६५. संसारी जीवों की गति कैसी होती है ?
उत्तर— विग्रहवती च संसारिण: प्राक् चतुर्भ्य: संसारी जीवों की गति कुटिल और सीधी दोनों ही प्रकार की होती है।

प्र.६६. अविग्रहागति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर— मोड़ रहित गति अविग्रहागति कहलाती है।

प्र.६७. अविग्रहागति कितने समय की होती है ?
उत्तर— एक समयाऽविग्रहा: अविग्रहा (मोड़ रहित) गति एक समय मात्र होती है।

प्र.६८. विग्रहगति में जीव आहारक होता है या अनाहारक ?
उत्तर – विग्रहगति में जीव एक, दो अथवा तीन समय तक अनाहारक रहता है।

प्र.६९. आहारक अनाहारक किसे कहते हैं ?
उत्तर— छ: पर्याप्तियों और तीन शरीर के योग्य पुद्गल परमाणुओं को ग्रहण करना आहारक व ग्रहण नहीं करना अनाहारक अवस्था कहलाती है।

प्र.७०. जन्म किसे कहते हैं ?
उत्तर— नवीन शरीर को धारण करना जन्म कहलाता है ।

प्र.७१. जन्म के कितने भेद हैं ?

उत्तर— सम्मूर्छनग भौपपादा जन्म। सम्मूर्च्छन, गर्भ और उपपाद के भेद से जन्म तीन प्रकार का होता है ।

प्र.७२. सम्मूर्छन जन्म से आपका क्या आशय है ?
उत्तर— सम्मूर्छन जन्म से आशय है, अपने शरीर के योग्य पुद्गल परमाणुओं के द्वारा माता—पिता के रज—वीर्य बिना ही अवयवों की रचना होना।

प्र.७३. गर्भ जन्म किसे कहते हैं ?
उत्तर— स्त्री के उदर में रज और वीर्य के मिलने से जो जन्म होता है उसे गर्भ जन्म कहते है।

प्र.७४. उपपाद जन्म किसे कहते हैं ?
उत्तर— माता—पिता के रज और वीर्य के बिना देव, नारकियों के उत्पत्ति स्थान विशेष को उपपाद जन्म कहते हैं।

प्र.७५. योनि किसे कहते हैं ?
उत्तर— जीवों की उत्पत्ति स्थान को योनि कहते हैं ।

प्र.७६. योनि और जन्म में क्या अंतर है ?
उत्तर— योनि और जन्म में आधार—आधेय का अंतर है। योनि आधार है और जन्म आधेय है।

प्र.७७. जन्म की आधारभूत योनियों के भेद बताईये
उत्तर— संचित्तशीतसंवृता: सेतरा मिश्राश्चैकशस्तद्योनय: सचित्त, शीत संवृत तीन इनसे उल्टी अचित्त, उष्ण, विवृत इस तरह मूल रूप से योनि के ९ भेद हैं ।

प्र.७८. योनि के कितने भेद हैं ?
उत्तर— योनि के मुख्य २ भेद हैं (१) गुणयोनि, (२) आकार योनि।

प्र.७९. गुण योनि के कितने भेद हैं ?
उत्तर— गुण योनि के मूल भेद नौ और उत्तर भेद चौरासी लाख है।

प्र.८०. ८४ लाख योनियां किस प्रकार होती हैं ?
उत्तर— नित्यनिगोद— ७ लाख, इतर निगोद — ७ लाख, पृथ्वीकायिक—७ लाख, अग्नि कायिक— ७ लाख, जलकायिक—७ लाख, वायुकायिक— ७ लाख, वनस्पतिकायिक—१० लाख, विकलेनिद्रय—दो इंद्रिय के २ लाख, तीन इंद्रिय— २ लाख, चार इंद्रिय—२ लाख। देव, नारकी और तिर्यंचों की ४—४ लाख तथा मनुष्यों की १४ लाख इस तरह ८४ लाख योनिया होती है ।

प्र.८१. आकार योनि के भेद कितने हैं ?
उत्तर— आकार यानि के ३ भेद हैं— (१) शंखावर्त योनि (२) कूर्मोन्नत योनि (३) वंशपत्र योनि ।

प्र.८२.गर्भ जन्म किन जीवों के होता है ?
उत्तर— जरायुजाण्डजपोतानां गर्भ: जरायुज, अण्डज और पोतज इन तीन प्रकार के जीवों के गर्भजन्म ही होंते है।

प्र.८३. जरायुज किसे कहते है ?
उत्तर— जो जीव जर से उत्पन्न होते है वे जरायुज कहलाते है ।

प्र.८४. अण्डज किसे कहते है ?
उत्तर— जो जीव अण्डों से पैदा होते है, वे अण्डज कहलाते है।

प्र.८५. पोतज किसे कहते है ?
उत्तर— जो जीव योनि से निकलते ही हलन—चलन आदि सामर्थ्य से युक्त है, उन्हें पोतज कहते हैं।

प्र.८६. देव और नारकियों का कौन सा जन्म होता है ?
उत्तर— देवनारकायामुपपाद: देव और नारकियों का उपपाद जन्म होता है।

प्र.८७. शेष जीवों को कौन सा जन्म होता है ?
उत्तर— शेषाणां सम्मूर्च्छनम् शेष जीवों का सम्मूर्च्छन जन्म होता है।

प्र.८८. शरीर कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर— औदारिक वैक्रियकाहारक तै जस का र्मणानि शरीराणि। औदारिक, वैक्रियक, आहारक, तैजस और कार्माण इस तरह ५ प्रकार के शरीर होते है।

प्र.८९. औदारिक आदि पांचो शरीरों के स्वामी कौन है ?
उत्तर— औदारिक शरीर— मनुष्य और तिर्यंच स्वामी वैक्रियक शरीर— देव और नारकी स्वामी आहारक शरीर — प्रमत्तसंयत (छठे गुणस्थानवर्ती) मुनि स्वामी तैजस और कार्माण — समस्त संसारी जीव स्वामी।

प्र.९०. वह कौन सा शरीर है जिसे इंद्रियां जानती हैं ?
उत्तर— एक मात्र औदारिक शरीर।

प्र.९१. अन्य शरीरों को इंद्रिया क्यों नहीं जानती ?

उत्तर— परं परं सूक्ष्मम् । अन्य चारों शरीर क्रमश: सूक्ष्म से सूक्ष्म हैं जैसे— औदारिक शरीर स्थूल है, वैक्रियक इससे सूक्ष्म, आहारक इससे सूक्ष्म तैजस आहारक से सूक्ष्म तथा कार्माण शरीर सबसे सूक्ष्म है । इसलिये इंद्रियों से नहीं जाने जाते।

प्र.९२. प्रदेशों की अपेक्षा शरीर की स्थिति कैसी है ?</fonऔt color>
उत्तर— प्रदेशतोऽसंख्येय गुणं प्राक् तैजसात्। प्रदेशों की अपेक्षा तेजस शरीर से पहले के शरीर असंख्यातगुणे है।

प्र.९३. तैजस और कार्माण शरीर की विशेषता क्या है ?
उत्तर— अप्रतीघाते तैजस और कार्माण शरीर प्रतीघात रहित है ।

प्र.९४. तैजस और कार्माण शरीर में क्या विशेषता है ?
उत्तर— अनादिसंबंधे चतैजस और कार्माण शरीर सभी जीवों के होता है।

प्र.९५. तैजस कार्मण शरीर किन जीवों के होता है ?
उत्तर— सर्वस्व तैजस और कार्माण शरीर सभी जीवों के होता है।

प्र.९६. एक जीव के एक साथ कितने शरीर संभव हैं ?
उत्तर— तदादीनि भाज्यानि युगपदेक स्मिन्ना चतुर्भ्य: । एक जीव के एक साथ तैजस और कार्माण से लेकर चार शरीर तक विकल्पपूर्वक होते हैं।

प्र.९७.किन जीवों के दो, तीन और चार शरीर होते है ?
उत्तर— विग्रहगति में जीव के २ शरीर तैजस और कार्माण होते है , मनुष्य व तिर्यंचों के ३ शरीर औदारिक, तैजस और कार्माण होते है, आहारक ऋद्धि वाले प्रमत्त संयत मुनि के चार शरीर औदारिक, आहारक, तैजस और कार्माण होते है । किसी भी जीव के एक समय में ५ शरीर नहीं होते है।

प्र.९८. कार्माण शरीर उपभोग योग्य है या नहीं ?
उत्तर— निरूपभोगमन्यतम् । अंत का कार्माण शरीर उपभोग रहित होता है।

प्र.९९. औदारिक शरीर का लक्षण बताईये ?
उत्तर—गर्भसम्मूर्च्छनजमाद्यम् । गर्भ और सम्मूर्च्छन जन्म से उत्पन्न हुआ शरीर औदारिक शरीर कहलाता है।

प्र.१००. वैक्रियक शरीर किसे कहते है ?
उत्तर— औपपादिक वैक्रियिकम् । उपपाद जन्म से होने वाला देव और नारकियों का शरीर वैक्रियक कहलाता है।

प्र.१०१.लब्धि किसे कहते हैं ?
उत्तर— त्तपो विशेष से प्राप्त होने से ऋद्धि की प्राप्ति को लब्धि कहते है ।

प्र.१०२. वैक्रियक शरीर किस कारण उत्पन्न होता है ?
उत्तर— लब्धिप्रत्ययं च । लब्धि के कारण भी वैक्रियक शरीर उत्पन्न होता है ।

प्र.१०३.लब्धि निमित्तक और कौन सा शरीर है ?
उत्तर— तैजसमपि । तैजस शरीर भी लब्धि से पैदा होता है।

प्र.१०४. तैजस शरीर कितने भेद वाला है ?
उत्तर— तैजस शरीर के दो भेद है— (१) नि: सरणात्मक (२) अनि:सरणात्मक ।

प्र.१०५. नि:सरणात्मक के कितने भेद हैं ?
उत्तर— नि:सरणात्मक के २ भेद है : (१) अशुभ तैजस (२) शुभ तैजस ।

प्र.१०६. अशुभ तैजस के बारे में समझाइये
उत्तर— जब कोई यति किसी के द्वारा अपमानित होने पर क्रोधित होता है तो उसके बायें कंधे से जीव प्रदेश सहित तैजस शरीर निकलता है । (२) यह काहल—बिल्ला के आकार का पुतला होता है।

प्र.१०७. अशुभ तैजस शरीर की लंबाई, चौड़ाई कितनी होती है ?
उत्तर— अशुभ तैजस शरीर १२ योजन लंबा तथा ९ योजन चौड़ा होता है।

प्र.१०८. अशुभ तैजस शरीर का रंग कैसा होता है ?
उत्तर— अशुभ तैजस शरीर जलते हुए अग्नि पुंज के समान अथवा दमकते हुए सिंदूर के समान लाल रंग का होता है।

प्र.१०९. अशुभ तैजस शरीर का काम क्या है ?
उत्तर— अशुभ तैजस शरीर जितनी देर रहता है जलाने योग्य वस्तुओं को भस्म करता है और उन्हें भस्म करने के पश्चात् पुन: लौटकर यति के शरीर में प्रवेश करता है और यतिराज (मुनिराज) का भी विनाश कर देता है।

प्र.११०.शुभ तैजस से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर— शुभ तैजस उग्रचारित्र वाले यति के दाहिने कंधे से निकलता है।

प्र.१११. शुभ तैजस का रंग कैसा होता है ?
उत्तर— शुभ तैजस का रंग सफेद होता है।

प्र.११२. शुभ तैजस का प्रभाव क्या होता है ?
उत्तर— शुभ तैजस से १२ योजन तक सुभिक्ष आदि होते रहते हैं।

प्र.११३. अनि: मरणात्मक तैजस से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर— अनि:सरणात्मक तैजस शरीर औदारिक, वैक्रियक और आहारक इन तीनों शरीरों के अंतर्गत रहता है तथा तीनों शरीरों की दीप्ति का कारण बनता है।

प्र.११४. आहारक शरीर का लक्षण बताईये, आहारक शरीर का स्वामी कौन है ?
उत्तर— शुभं विशुद्धमव्याघाति चाहारकं प्रमत्तसंयतस्यैव । आहारक शरीर शुभ है, विशुद्ध कर्म का कार्य है और बाधा रहित है। यह प्रमत्तसंयत नामक छठे गुणस्थानवर्ती मुनियों के होता है।

प्र.११५. आहारक शरीर को आहारक शरीर क्यों कहा जाता है ?
उत्तर— आहारक शरीर तत्वज्ञान को ग्रहण करता है इसलिये यह आहारक शरीर कहलाता है।

प्र.११६. नारकी और सम्मूर्छन जीवों के कौन सा लिंग होता है ?
उत्तर— नारक सम्मूर्छि नो नपुं सकानि। नारकी व सम्मूर्छन जीव नपुंसक होते हैं अर्थात् नारकी और सम्मूर्छन जीवों के एक नपुंसकवेद होता है।

प्र.११७. देवों के कौन सा वेद होता है ?
उत्तर— न देवा:। देव नपुंसक नहीं होते, अर्थात् देवों के स्त्रीवेद व पुरूषवेद दो वेद होते हैं।

प्र.११८. मनुष्य और तिर्यंचों के कौन सा वेद होता है ?
उत्तर— शेष मनुष्य और तिर्यंचों के तीनों (स्त्री—पुरुष—नपुंसकवेद) वेद होते हैं ।

प्र.११९.अरिहंत सिद्ध परमेष्ठी के कौन सा वेद होता है ?
उत्तर— अरिहंत सिद्ध परमेष्ठी वेद रहित होते हैं।

प्र.१२०. चारों गति के जीव आयु पूर्ण करके नवीन शरीर धारण करते हैं या आयु पूर्ण किये बिना ?
उत्तर— औपपादिक चरमोत्तमदेहाऽसंख्येयवर्षायुषऽनपवत्र्यायुष:।। उपपाद जनम वाले, चरमोत्तम देह वाले और असंख्यात वर्ष की आयु वाले जीव अनपवत्र्य आयु वाले होते हैं।