तीर्थंकरों की परम्परा का काल
तृतीयकाल में तीन वर्ष, साढ़े आठ माह के अवशिष्ट रहने पर ऋषभदेव मुक्ति को प्राप्त हुए। ऋषभदेव के मुक्त होने के पश्चात् पचास लाख करोड़ सागर के बीत जाने पर अजितनाथ मुक्ति को प्राप्त हुए। इनके बाद तीस लाख करोड़ सागर बीत जाने पर संभवनाथ सिद्ध हुए। इनके अनन्तर दस लाख करोड़ सागर के बीत जाने पर अभिनंदननाथ मुक्त हुए। इनके बाद नौ लाख करोड़ सागर के बीत जाने पर सुमतिनाथ सिद्धि को प्राप्त हुए। इनके अनन्तर नब्बे हजार करोड़ सागर के बाद पद्मप्रभजिन मुक्त हुए। पुन: नौ हजार करोड़ सागर बाद सुपाश्र्वनाथ मुक्त हुए। अनन्तर नौ सौ करोड़ सागर बाद चन्द्रप्रभ मुक्त हुए। पुन: नब्बे करोड़ सागर के बाद पुष्पदंतजिन सिद्ध हुए। पुन: नौ करोड़ सागर के बाद शीतलजिन सिद्ध हुए। अनन्तर तैंतीस लाख तिहत्तर हजार नौ सौ सागर के बाद श्रेयांसजिन सिद्ध हुए। पुन: चौवन सागर के बाद वासुपूज्य, तीस सागर के बाद विमलनाथ, नौ सागर के बाद अनन्तनाथ और चार सागर के बाद धर्मनाथ सिद्ध हुए। इसके पश्चात् पौन पल्य कम तीन सागर के बाद शांतिनाथ, पुन: अर्धपल्य के बाद कुंथुनाथ और एक हजार करोड़ वर्ष कम पाव पल्योपम के बीत जाने पर अरनाथ भगवान मुक्ति को प्राप्त हुए। इसके पश्चात् एक हजार करोड़ वर्षों के बाद मल्लिनाथ, चौवन लाख वर्ष के बाद मुनिसुव्रत, छह लाख वर्ष के बाद नमिनाथ, पाँच लाख वर्षों के बाद नेमिनाथ, तिरासी हजार सात सौ पचास वर्षों के बाद पाश्र्वनाथ और दो सौ पचास वर्षों के बीत जाने पर वीर भगवान मुक्ति को प्राप्त हुए हैं। वीरप्रभु पंचमकाल के प्रारंभ होने में तीन वर्ष साढ़े आठ माह काल बाकी रहने पर ही मोक्ष को प्राप्त हुए हैं। इनको मुक्त हुए आज ढाई हजार वर्ष हो गये हैं। भगवान महावीर स्वामी ने कार्तिक कृष्णा अमावस्या के उषाकाल में मुक्ति को प्राप्त किया है जिसके उपलक्ष्य में आज तक सर्वत्र दीपमालिका उत्सव मनाया जाता है और सदा ही मनाया जाता रहेगा।
धर्म की हानि-
पुष्पदंत तीर्थंकर के तीर्थ में अन्त में पाव पल्यपर्यंत धर्म का अभाव हो गया अनन्तर शीतलनाथ हुए। इनके तीर्थ में अर्ध पल्य, श्रेयांसनाथ के तीर्थ में पौन पल्य, वासुपूज्य के तीर्थ में एक पल्य, विमलनाथ के तीर्थ में पौन पल्य, अनन्तनाथ के तीर्थ में अर्धपल्य और धर्मनाथ के तीर्थ में पाव पल्यपर्यन्त धर्म तीर्थ का व्युच्छेद रहा है अर्थात् हुण्डावसर्पिणी काल के दोष से उस समय दीक्षा लेने वालों का अभाव होने से धर्म सूर्य अस्त हो गया था। (तिलोयपण्णत्ति पृ. ३०७)
Bhut hi accha article
Bhut hi gyanvardhak article h
Jai Jinendra ,
Itne vigat varsho k paschaat hme jain dharam m janm mila or aise bhaavi Teerthankaro ki jeevani padne ka saubhagya mila…
Aise teerthankaroo ko mera shat shat naman..???
If you want to study something..then study about our teerthankar..