मुनि कुमुदेन्दु गुरु विरचित सर्व भाषामयी अंकाक्षर भाषा काव्य “सिरि भूवलय” (Siribhoovalaya) एक अद्भुत एवं संपूर्ण विश्व में अद्वितीय रचना है। अंकाक्षर भाषा की जटिलता के कारण यह ग्रन्थ पिछले करीब एक हज़ार वर्षों से विलुप्त प्राय रहा। करीब साठ वर्ष पूर्व इस ग्रन्थ की एकमात्र उपलब्ध प्रति को पंडित येल्लप्पा शाष्त्री ने अनथक प्रयत्नों से बूझने में सफलता प्राप्त की एवं अन्य विद्वानों के सहयोग इसे प्रचारित भी किया। मूल रूप से इस ग्रन्थ को कन्नड़ भाषा की कृति कहने में आता है। परंतु माना जाता है कि इस में 718 भाषाओँ की रचनाएँ समाहित हैं – जिन्हें 18 मूल भाषाएँ हैं तथा 700 उप-भाषाएँ हैं।
प्रारंभिक बहुमूल्य प्रयत्नों के पश्चात अभी भी इस ग्रन्थ (Siribhoovalaya) में समाहित विशाल ज्ञान भंडार को प्रकट करना बाकी है. इसके लिए कंप्यूटर एवं भाषाविदों का सामूहिक प्रयत्न आवश्यक है .
वेब-साईट (www.siri-bhoovalaya.org ) का उद्देश्य इस ग्रन्थ के चक्रों और बंधों को उद्घाटित करने सम्बंधित शोध या इसमें निहित ज्ञान से साधारण जिज्ञासु, शोधार्थी एवं विद्वान सुधीजनों को अवगत कराना है . इस वेब-साईट से एक बहु-विध उपयोगी एवं विश्वव्यापी मंच प्राप्त हो सकेगा, जिसके माध्यम से जानकारी और शोध सामग्री का आदान प्रदान सुविधा जनक तरीके से त्वरित गति से हो सकेगा |
आपसे आग्रहपूर्वक अनुरोध है कि इस विस्मयकारी धरोहर का परिचय ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँच सके इसके लिए अपना बहुमूल्य योगदान देने अथवा इस परियोजना में शामिल होने का प्रयत्न अवश्य करें। अगर आप शोधार्थी हैं और अपने शोध को इस माध्यम से प्रकाशित करना चाहते हैं तो आपका स्वागत है। अगर आप भाषाविद हैं तो इस ग्रन्थ में विभिन्न भाषाओँ में निहित ज्ञान को प्रकट करने में अपनी सामर्थ्य का प्रयोग करें ।
सिरि भूवलय (Siribhoovalaya) में प्रयुक्त पारिभाषिक शब्दों का संक्षिप्त परिचय :
चक्र : २७ अंक प्रति पंक्ति में रख कर, २७ पंक्तियों को समायोजित करके २७x२७ अंकों की एक मैट्रिक्स को एक चक्र कहते हैं । इस प्रकार एक चक्र में २७x२७ अंक = ७२९ कुल अंक समायोजित होते हैं । किसी भी चक्र में सिर्फ १ से लेकर ६४ तक के अंकों को ही प्रयुक्त किया जा सकता है । सिरि भूवलय के ५६ अध्यायों में कुल १२७० चक्र उपलब्ध हैं । अनुमान है कि इन चक्रों में ६ लाख श्लोक समाहित हैं । निम्न चित्र में सिरि भूवलय के प्रथम चक्र को दर्शाया गया है ।
बंध : किसी एक चक्र में समाहित रचना को अनिबद्ध करने की प्रक्रिया के क्रम को बंध कहा जाता है, इसे साधारण शब्दों में चक्र के ताले को खोलने की कुंजी कह सकते हैं । बन्ध से प्राप्त अंक श्रंखला के प्रत्येक अंक के बदले उसके ध्वन्याक्षर को रख कर ध्वन्याक्षर श्रंखला प्राप्त होती है – इसी के संयोजन से किसी एक भाषा में रचना उद्घाटित होती है । अनिबद्ध करने की प्रक्रिया के अनेकों प्रकारों विभिन्न नामों से जाना जाता है । उदाहरण स्वरुप बंधों के नाम हैं चक्र-बंध, नवमांक-बंध, श्रेणी-बंध, विमलांक-बंध, हंस-बंध, सारस-बंध, मयूर-बंध आदि आदि ।
ध्वन्याक्षर सारणी : अंक को ध्वन्याक्षर में परिवर्तित करने के लिए निम्न सारणी का प्रयोग किया जाता है ।
चक्र-बंध : चक्र-बंध की प्रक्रिया में एक चक्र के समस्त ७२९ अंकों को निम्न दर्शाये गये क्रम से अनिबद्ध किया जाता है । बंध का आरम्भ जिस कोष्ठिका में अंक १ है, वहां से लेकर क्रम को बढ़ाते हुये जिस कोष्ठिका में अंक ७२९ है वहां समाप्त होता है । प्रत्येक कोष्ठिका के अंकों को क्रम से सारणी के अनुसार ध्वन्याक्षर में परिवर्तित किया जाता है. । तत्पश्चात इन ध्वन्याक्षरों को शब्दों में और शब्दों को छंदों में संयोजित करके रचना उद्घाटित होती है । निम्न चित्र में चक्र-बंध में प्रयुक्त कोष्ठिकाओं का क्रम उनमें लिखे अंकों के अनुसार होता है ।
निम्न चित्र में ऊपर दर्शाये गए सिरि भूवलय (Siribhoovalaya) के प्रथम चक्र चक्र पर चक्र-बंध के प्रयोग से प्राप्त ध्वन्याक्षरों की श्रंखला प्रदर्शित की गयी है । इसके लिए कंप्यूटर प्रोग्राम की सहायता ली गई है ।
ऊपर के चित्र में चक्र-बंध द्वारा प्रकट किये गए ध्वन्याक्षरों को शब्दों एवं शब्दों को छंदों में संयोजित करके निम्न काव्य प्राप्त होता है ।
अष्ट महाप्रातिहार्य वयभवदिन्द । अष्ट गुणन्गलौल औम्दम । स्रष्टिगे मंगल पर्याय दिनित | अष्टम जिनगेरगुवेनु टवणेय कौलु पुस्तक पिन्छ पात्रेय । अवत्रदा क…
Jai Jienendra ,
Mujhe acche se gyat h jab hum log Sanganer se laut rhe the tab aapne is vishay pr charcha ki thi…
Yhn par is tarah ke vishay jodne k liye aapka bahut bahut Aabhar….
Bhut sundar krati….????
JAINISM is one of oldest scientific religion.
This Kriti is live example of that.
We hope we can explore it more N more soon???
मुझे ग्रंथ के विषय में विशेष जानने की अभिलाषा है। कृपया संपर्क सुझाएँ
Muje bhi is mahan granthkar ke rachyita ke granth ko samajna hai .
Toh muje kaha jana hoga aur me isme.kya help kar sakta hoon.