प्रश्न -बाह्य निमित्त क्या हो सकते हैं ?
उत्तर -जिनेन्द्र भगवान का दर्शन, मुनियों का दर्शन, तीर्थवंदना, गुरु उपदेश, जातिस्मरण आदि बाह्य निमित्त हैं जो सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति में कारण माने हैं।
प्रश्न -अन्तरंग निमित्त कौन से हैं ?
उत्तर -आत्मा में दर्शन मोहनीय कर्म का उपशम, क्षय और क्षयोपशम अन्तरंग निमित्त है जो सम्यग्दर्शन को उत्पन्न कराने वाला है ।
प्रश्न -नरकगति में सम्यग्दर्शन किन-किन कारणों से उत्पन्न हो सकता है ?
उत्तर -प्रथम,व्दितीय और तृतीय इन तीन नरकों में सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति के तीन कारण हैं-जातिस्मरण, वेदनानुभव और परोपदेश। चौथे नरक से लेकर सातवें नरक तक दो कारण हैं-जातिस्मरण, वेदनानुभव।
प्रश्न -नरकों में उपदेश श्रवण कौन कराता है ?
उत्तर -पूर्व जन्म का कोई मित्र देव पर्याय से, परोपकार भावना से तीन नरकों तक जाकर अपने संबंधी को उपदेश देकर सम्यग्दर्शन उत्पन्न करा देते हैं, यह कथन षट्खण्डागम और पुराण ग्रंथ में आया है । जैसे-सीताजी का जीव सोलहवें स्वर्ग में प्रतीन्द्र था उसने तृतीय नरक में जाकर रावण को सम्बोधित किया था।
प्रश्न -देव लोग धर्म श्रवण कराने हेतु चौथे आदि नरकों में क्यों नहीं जाते हैं ?
उत्तर -क्योंकि उनके गमन की सीमा तीसरे नरक तक ही है अत: वे आगे नहीं जा सकते हैं।
प्रश्न –तिर्यंच प्राणी कितने कारणों से सम्यग्दर्शन प्राप्त कर सकते हैं ?
उत्तर -जातिस्मरण, जिनमहिमा दर्शन और धर्मोपदेश इन तीन कारणों में से किसी कारण के मिलने पर तिर्यंच प्राणी सम्यग्दर्शन उत्पन्न कर सकते हैं।
प्रश्न –तिर्यंच प्राणी जन्म लेने के कितने दिन बाद सम्यग्दर्शन की योग्यता प्राप्त करते हैं ?
उत्तर -तिर्यंच जीव जन्म लेने के बाद ३ दिन से सात दिन तक सम्यग्दर्शन की योग्यता प्राप्त कर लेते हैं। इस काल को ‘‘दिवस पृथक्त्व’’ नाम से जाना जाता है ।
प्रश्न -मनुष्यगति में सम्यग्दर्शन की योग्यता कब प्राप्त होती है ?
उत्तर -मनुष्यगति में ८ वर्ष के बाद सम्यग्दर्शन की योग्यता आ जाती है ।
प्रश्न -मनुष्यगति में सम्यक्त्वोत्पत्ति के कितने कारण हैं ?
उत्तर -तीन कारण हैं-जातिस्मरण, धर्मोपदेश और जिनबिम्ब दर्शन।
प्रश्न -देवगति में कितने कारणों से सम्यग्दर्शन उत्पन्न हो सकता है ?
उत्तर -जातिस्मरण, धर्मोपदेश, जिनबिम्ब दर्शन और देवधिॅदशॅन इन चार कारणों से देवों को सम्यग्दर्शन उत्पन्न हो सकता है ।
Bhut sundar yese hi or bhejna.:-) 🙂
Bahut acchi jankari prapt hui