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ऐरावत क्षेत्र – यह क्षेत्र छह खण्डो में विभाजन है । इसमें पाँच म्लेच्छखण्ड और एक आर्यखण्ड है । भरत क्षेत्र के समान ही सभी शलाका पुरुष इस क्षेत्र के आर्यखण्ड में उत्पन्न होते हैं । ऐरावत नामक राजा के द्वारा परिपालित होने इसका ऐरावत-क्षेत्र नाम प्रसिद्ध हुआ है । अढ़ाई द्वीप में पाँच ऐरावत-क्षेत्र है ।
ऐरावत हाथी – सौधर्म और ऐशान स्वर्ग के वाहन जाति के देव विक्रिया के द्वारा एक लाख योजन प्रमाण दीर्घ ऐरावत नामक हाथी बनते हैं । यह हाथी दिव्य रत्न-मालाओ से युक्त बत्तीस मुख वाला होता है। तीर्थंकरॊ के जन्माभिषेक के अवसर पर बालक-तीर्थंकर को लेकर सौधर्म इन्द्र इसी हाथी पर बैठकर आकाशमार्ग से सुमेरु पर्वत पर जाता है ।
ऐलक – जो श्रावक की समस्त ग्यारह प्रतिमाओं का पालन करते है और दिन में एक बार बैठकर हाथ की अंजली में गृहस्थ के द्वारा दिया गया निर्दोष व प्रासुक आहार लेते हैं वे ऐलक कहलाते हैं । केशलुचन करना इनके नियमों में शामिल है ।