Jain Darshan Dictionary : ऋ

–ऋ–

ऋजुगति पूर्व भव के शरीर को छोड़कर आगामी भव में जाते हुए जीव की जो सरल अर्थात्‌धनुष से छूटे हुए बाण के समान मोड़ा-रहित गति होती है – उसे ऋजुग्ति कहते हैं । इसका दूसरा नाम ईषुगति भी है।

ऋजुमति – जो ज्ञान दूसरे के मन में स्थित सरल अर्थ को जान लेता है उसे ऋजुमति-मन-पर्यय-ज्ञान कहते हैं ।

ऋजुसूत्र – जो केवल वर्तमान काल संबंधी पर्याय को ग्रहण करता है उसे ऋजुसूत्रनय कहते हैं । यह दो प्रकार का है – सूक्ष्म-ऋजुसूत्र और स्थूल-ऋजुसूत्र। सूक्ष्म-ऋजुसूत्र-नय प्रतिक्षण होने वाली अर्थ-पर्याय को ग्रहण करता है।

ऋद्धि – तपस्या के फलस्वरुप साधु को जो विशेष शक्तियाँ प्राप्त हो जाती है उन्हे ऋद्धि कहते हैं । ऋद्धियां सात प्रकार की है जिनके भेद-प्रभेद चौसठ है।

ऋद्धिगारव – शिष्य, पुस्तक, कमण्डलु आदि के द्वारा अपना बड़प्पन या अभिमान प्रगट करना ऋद्धिगारव नामक दोष है।

ऋषि – ऋद्धि प्राप्त साधुओं को ऋषि कहते है। जो चार प्रकार के है- राजर्षि, ब्रह्‌मर्षि, देवर्षि और परमर्षि।

<–Previous (ऊ)Next (ए)–>