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ईर्यापथक्रिया – ईर्या का अर्थ गति या गमन है। अतः ईर्यापथ की कारणभूत क्रिया ईर्यापथ-क्रिया है।
ईर्यापथ-आस्रव – उपशान्त कषाय, क्षीण कषाय और संयोग-केवली भगवान् के कषाय का अभाव हो जाने से मात्र योग के द्वारा आए हुए कर्म सूखी दीवार पर पड़ी धूल के समान तुरन्त झड़ जाते है, बंधते नहीं है यह ईर्यापथ-आस्रव कहलाता है।
ईर्या-समिति – प्राणियो को पीड़ा न होवे ऐसा विचार कर जो प्रासुक मार्ग से दिन में चार हाथ आगे देखकर सावधानी पूर्वक अपने कार्य के लिए साधु का आना-जाना होता है वह ईर्या-समिति है। यह साधु का एक मूलगुण है।
ईर्ष्या – दूसरो के उत्कर्ष (बढ़ती) को न सह सकना ईर्ष्या है।
ईशित्व ऋद्धि – जिससे साधु को सारे जगत पर प्रभुत्व करने की शक्ति प्राप्त हो वह ईशित्व ऋद्धि है।
ईश्वर – केवलज्ञान आदि रुप ऐश्वर्य को प्राप्त करने वाले अर्हन्त और सिद्ध परमात्मा ईश्वर कहलाते है।
ईहा-मतिज्ञान – अवग्रह के द्वारा जाने गये पदार्थ के विषय में विशेष जानने की इच्छा या जिज्ञासा को ईहा कहते है। जैसे – यह सफेद है, तो क्या है -बगुला है या ध्वजा है।