Jain Darshan Dictionary : घ

–घ–

 घड़ी – चौबीस मिनिट की एक घड़ी होती है । दो घड़ी का एक मुहूँ र्त और तीस मुहूँ र्त का दिन-रात होता है ।

घातिया कर्म – जीव के गुणों का घात करने वाले अर्थात्‌गुणों को ढ़कने वाले या विकृत करने वाले ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, अन्तराय और मोहनीय इन चार कर्मों को घातिया – कर्म कहते हैं ।

घृतस्रावी ऋद्धि – जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधु के हाथ में दिया गया रुखा-सूखा आहार तत्काल घी के समान रसवाला हो जाता है उसे घृतस्रावी या सर्पिस्रावी ऋद्धि कहते हैं ।

घोरतप ऋद्धि – जिस ऋद्धि के प्रभाव से ज्वर आदि से पीड़ित होने पर भी साधु अत्यन्त कठिन तप करने में सक्षम होते हैं वह घोर-तप ऋद्धि है ।

घोर-पराक्रम-तप-ऋद्धि – जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधु अनुपम तप करते हुए तीन लोक के सहार की शक्ति से संपन्न और सहसा समुद्र के जल को सुखा देने की सामर्थ्य से युक्त होते हैं वह घोर पराक्रम-तप-ऋद्धि है ।

घोर-ब्रह्मचर्य-तप ऋद्धि – जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधु सब गुणों से संपन्न होकर अखण्ड़ ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं, उसे घोर-ब्रह्मचर्य-तप ऋद्धि कहते हैं । इसके प्रभाव से साधु के समीप चौदारिक की बाधाएं और महायुद्ध आदि नहीं होते।

घ्राण-इन्द्रिय- जिसके द्वारा संसारी जीव गंध का ज्ञान करते हैं उसे घ्राण-इन्द्रिय कहते हैं ।

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