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औदायिक-भाव – जीव के जो भाव कर्म के उदय से उत्पन्न होते है वह औदायिक-भाव कहलाते है । औदायिक-भाव इक्कीस हैं – चार गति, चार कषाय , तीन लिंग , एक मिथ्यादर्शन, एक अज्ञान, एक असंयम , एक असिद्ध भाव और छह लेश्याऐं ।
औदारिक शरीर – जो शरीर गर्भजन्म से या सम्मूर्छन जन्म से उत्प्न्न होता है वह औदारिक शरीर है । अथवा तिर्यंच और मनुष्यों के स्थूल शरीर को औदारिक शरीर कहते हैं ।
औपशमिक-भाव – जो कर्मॊं के उपशम से उत्पन्न होता है उसे औपशमिक -भाव कहते हैं । औपशमिक भाव दो हैं – औपशमिक सम्यक्त्व और औपशमिक-चारित्र ।
औषधि दान – श्रद्धापूर्वक सद्पात्र को अनुकूल औषधि, पथ्य आदि देना औषधि-दान कहलाता है ।