प्र.१. देव कितने हैं ? बताईये। उत्तर — ‘‘देवाश्चतुर्णिकाया:’’। देव चार निकाय वाले हैं प्र.२. देव कौन कहलाते हैं ? उत्तर — देवगति नामकर्म के उदय होने पर जो नाना प्रकार की बाह्य विभूति सहित द्वीप समुद्रादि स्थानों में इच्छानुसार क्रीड़ा करते हैं वे देव होते हैं। प्र.३. निकाय शब्द से क्या…
तत्वार्थ सूत्र प्रश्नोत्तरी–तृतीय अध्याय
प्र.१. नारकी जीव कहाँ रहते हैं ? उत्तर— नारकी जीव अधोलोक की सात भूमियों में रहते हैं । प्र.२. नरक की भूमियों के नाम बताईये ? उत्तर—‘‘रत्नशर्कराबालुकापंकधूमतमोमहातम: प्रभाभूमयो घनाम्बुवाताकाश प्रतिष्ठा: सप्ताधोऽध:।’’ रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमप्रभा, तथा महातमप्रभा ये सात नरक की भूमियाँ हैं और क्रम से नीचे—नीचे घनोदधिवातवलय, घनवातवलय, तनुवातवलय,…
तत्वार्थ सूत्र प्रश्नोत्तरी–द्वितीय अध्याय
प्र.१. जीव के असाधारण भाव (स्वतत्व) के नाम बताओ ? उत्तर— १. औपशमिक, २. क्षायिक, ३.मिश्र, ४. औदयिक और पारिणामिक ये ५ भाव जीव के स्वतत्व अथवा असाधारण भाव है। प्र.२. औपशमिक भाव से क्या आशय है ? उत्तर— कर्मों के उपशम से आत्मा का होने वाला भाव औपशमिक भाव है। प्र.३….
तत्वार्थ सूत्र प्रश्नोत्तरी–प्रथम अध्याय
प्र.१. मोक्षमार्ग क्या है ? सूत्र लिखिये । उत्तर — सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्ग:। प्र.२. सूत्र का अर्थ स्पष्ट कीजिये ? उत्तर — सम्यग्दर्शन, सम्यक्ज्ञान और सम्यक् चारित्र तीनों की एकता ही मोक्षमार्ग है। प्र.३.मोक्ष क्या है ? उत्तर — आत्मा का हित अथवा अष्ट कर्मों से रहित होना मोक्ष है। प्र.४. मोक्ष का स्वरूप क्या…
जैन महाभारत –Part2
श्री वसुदेव वसुदेव का देशाटन— राजा समुद्रविजय ने अपने आठों भाइयों का विवाह कर दिया था, मात्र वसुदेव अविवाहित थे। कामदेव के रूप से सुन्दर वसुदेव बालक्रीड़ा से युक्त हो शौर्यपुर नगरी में इच्छानुसार क्रीड़ा किया करते थे। तब कुमार वसुदेव को देखने की इच्छा से नगर की स्त्रियों की बहुत…
जैन महाभारत –Part1
(१) कौरव-पाण्डव कुरुवंश परम्परा— कुरुजांगल देश के हस्तिनापुर नगर में परम्परागत कुरुवंशियों का राज्य चला आ रहा था। उन्हीं में शान्तनु नाम के राजा हुए। उनकी ‘‘सबकी’’ नाम की रानी से पाराशर नाम का पुत्र हुआ। रत्नपुर नगर के ‘‘जन्हु’’ नामक विद्याधर राजा की ‘‘गंगा’’ नाम की कन्या थी। विद्याधर राजा ने पाराशर के साथ गंगा का…
भवनवासी एवं व्यंतरदेवों के निवासस्थान (तत्वार्थवार्तिक से)
इस रत्नप्रभा पृथ्वी के पंकबहुल भाग में असुरकुमार देवों के चौंसठ लाख भवन हैं। इस जम्बूद्वीप से तिरछे दक्षिण दिशा में असंख्यात द्वीप समुद्रों के बाद पंकबहुल भाग में चमर नामक असुरेन्द्र के चौंतीस लाख भवन हैं। इस असुरेन्द्र के चौंसठ हजार सामानिक, तेतीस त्रायस्त्रिंश, तीन सभा, सात प्रकार की…
जैन आयुर्वेद ग्रंथ : कल्याणकारकम्
आचार्य उग्रादित्य कृत कल्याणकारकम् KALYĀṆAKĀRAKAṀ तीर्थंकरों द्वारा उपदेशित द्वादशांग रूप शास्त्र के उत्तर भेद प्राणावाय पूर्व ही आयुर्वेद शास्त्रों का मूल स्रोत ग्रंथ है। इस ग्रंथ में विस्तार से अष्टांगायुर्वेद का वर्णन है। ८—९ वीं शताब्दी में जैनाचार्य उग्रादित्य ने कल्याणकारकम् नामक महान् आयुर्वेद ग्रंथ की रचना की थी। जो…
भक्तामर स्तोत्र (अर्थसहित – सचित्र ) भक्तामर- प्रणत- मौलिमणि – प्रभाणां– मुद्योतकम् – दलितपाप- तमोवितानम्। सम्यक्-प्रणम्य- जिनपाद- युगम्- युगादा- वालम्बनम्-भवजले- पतताम्-जनानाम्॥१॥ अर्थ : झुके हुए भक्त देवो के मुकुट जड़ित मणियों की प्रथा को प्रकाशित करने वाले, पाप रुपी अंधकार के समुह को नष्ट करने वाले, कर्मयुग के प्रारम्भ में संसार…
नमिनाथ भगवान का परिचय
परिचय इसी जम्बूद्वीपसम्बन्धी भरतक्षेत्र के वत्स देश में एक कौशाम्बी नाम की नगरी है। उसमें इक्ष्वाकुवंशी ‘पार्थिव’ नाम के राजा रहते थे और उनकी सुंदरी नाम की रानी थी। इन दोनों के सिद्धार्थ नाम का श्रेष्ठ पुत्र था। राजा ने किसी समय सिद्धार्थ पुत्र को राज्यभार देकर जैनेश्वरी दीक्षा ले…
वैज्ञानिक भगवान् महावीर
विचार की दृष्टि से जिनाणी विज्ञान है और आचार की दृष्टि से आत्म विकास का मार्ग। जाति, व्यक्ति, सम्प्रदाय आदि संकीर्ण विचारों से परे भगवान् महावीर ने Science of Creation and Spiritual Evolution का विकास जनकल्याण हेतु किया ‘नानस्स सारो आसरो’ के उद्घोष के साथ सर्वदर्शी सर्वज्ञ भगवान महावीर ने सहस्रों…
भगवान महावीर का जीवन दर्शन विश्व शांति की अमर देन
अनादिकाल से विश्व की परम्परा विद्यमान है। प्रवाहमान जगम क्रम में जैन शासन भी अपने में अनादि है। अनंत अनंत तीर्थंकरों की अपेक्षा से यह जैन शासन अनादि है। प्रत्येक तीर्थंकर की अपेक्षा से इसका तत्वर्ती प्रारंभ माना जा सकता है। जैन शासन का दीप सदा से प्रकाशमान है। इसकी…