दीक्षा के दो दिन के पश्चात् भगवान Bhagwan Mahaveer प्रथम पारणा के लिए निकले। कूल ग्राम के राजा कूल (अपरनाम वकुल) के यहाँ उनका प्रथम पड़गाहन हुआ। महामुनि को अत्यन्त प्रफुल्लित भाव से राजा एवं रानी ने खीर का आहार प्रदान किया। देवताओं ने महामुनि महावीर के इस प्रथम आहार पर…
Month: September 2017
Bhagwan Mahaveer Jeevan Parichay Episode – 7
३० वर्ष की अवस्था में भगवान (Bhagwan Mahaveer) ने मगशिर कृष्णा दशमी को कुण्डलपुर के निकट मनोहरवन में सालवृक्ष के नीचे पंचमुष्टि केशलोंच करके जैनेश्वरी दीक्षा धारण कर ली। देवों ने आकर भगवान का दीक्षाकल्याणक महोत्सव मनाया। दो दिन का योग धारण करके महामुनि महावीर अविचल खड़े हो गये। इन्द्र…
Bhagwan Mahaveer Jeevan Parichay Episode – 6
धीरे-धीरे महावीर Bhagwan Mahaveer बड़े होने लगे। उनके लिए सदैव स्वर्ग से ही भोजन, वस्त्र एवं आभूषण आदि आते थे। उन्होंने कभी भी अपने घर का भोजन नहीं किया क्योंकि सभी तीर्थंकरों के लिए यही नियम है कि वे स्वर्ग का दिव्य भोजन ही करते हैं। युवावस्था को प्राप्त करने पर…
अष्टद्रव्य (Ashta Dravya) से पूजा
अष्टद्रव्य से पूजा भगवान की अष्टद्रव्य से पूजा करते समय चरणों में चंदन लगाना। फूल,फल, दीप, धूप वास्तविक लेना ऐसा विधान है प्रमाण देखिये- जल से पूजन करने का फल पसमइ रयं असेसं, जिणपयकमलेसु, दिण्णजलधारा।भिंगारणालणिग्गय, भवंतभिंगेहि कव्वुरिया।। प्रशमति रज: अशेषं, जिनपदकमलेषु दत्तजलधारा। भृंगारनालनिर्गता, भ्रमद्भृंगै: कर्बुरिता।।४७०।।१ अर्थ– सबसे पहले जल की…
जैनाचार्यों (Jain Acharya) द्वारा प्रणीत ग्रंथों में विज्ञान(Science) के तत्त्व
जैनाचार्यों (Jain Acharya’s ) द्वारा प्रणीत ग्रंथों में विज्ञान के तत्त्व जैनाचार्यों (Jain Acharya ) द्वारा ज्ञान—विज्ञान के विविध क्षेत्रों में सहस्त्रों ग्रंथों का सृजन किया गया है। इनमें से कुछ प्रकाशित हो चुके हैं एवं शेष अद्यतन पांडुलिपियों में संरक्षित है अथवा नष्ट हो चुके हैं। प्रस्तुत लेख में…
Anekantavada In Jainism
जैन दर्शन में अनेकान्त (Anekantavada) और स्याद्वाद मध्य प्रदेश संस्कृत अकादेमी, भोपाल द्वारा चातुर्मास सेवा समिति, इन्दौर के सहयोग से अ. भा. अनेकान्त संगोष्ठी, इन्दौर में १६—१७ नवम्बर ९६ को आयोजित की गई थी। यह आलेख इसी संगोष्ठी के प्रसंग पर मूर्घन्य जैन विद्वान पं. नाथूराम ‘डोंगरीय’ जैन द्वारा लिखा गया…
Lord Bahubali Gommateshwara
LORD BAHUBALI VICTORY OVER THE VICTORIOUS King Nabhiraj, after meeting Lord ‘Vrishabh Deva’, happily and respectfully speaks to him thus- ‘O Lord, you are the chief commander of this world. Being ‘Yugadi Purush’ you are ‘Brahma’ (Eternal God). In your creation I am only a very small creature. Even then, I…
उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म : जाप्य—ॐ ह्रीं उत्तमब्रह्मचर्यधर्माङ्गाय नम:।
श्री रइधू कवि ने अपभृंश भाषा में उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म के विषय में कहा है बंभव्वउ दुद्धरू धरिज्जइ वरू पेडिज्जइ बिसयास णिरू। तिय—सुक्खइं रत्तउ मण—करि मत्तउ तं जि भव्व रक्खेहु थिरू।। चित्तभूमिमयणु जि उप्पज्जइ, तेण जि पीडिउ करइ अकज्जइ। तियहं सरीरइं णिंदइं सेवइ, णिय—पर—णारि ण मूढउ देयइ।। णिवडइ णिरइ महादुह…
दशलक्षणधर्म : उत्तम अकिंचन’ यानी आत्मकेंद्रित करना
उत्तम आकिचन्य धर्म आत्मा की उस दशा का नाम है जहां पर बाहरी सब छूट जाता है किंतु आंतरिक संकल्प विकल्पों की परिणति को भी विश्राम मिल जाता है। बाहरी परित्याग के बाद भी मन में ‘मैं’ और ‘मेरे पन’ का भाव निरंतर चलता रहता है, जिससे आत्मा बोझिल होती…
सिरिभूवलय-Siribhoovalaya – Kumudendu Muni
मुनि कुमुदेन्दु गुरु विरचित सर्व भाषामयी अंकाक्षर भाषा काव्य “सिरि भूवलय” (Siribhoovalaya) एक अद्भुत एवं संपूर्ण विश्व में अद्वितीय रचना है। अंकाक्षर भाषा की जटिलता के कारण यह ग्रन्थ पिछले करीब एक हज़ार वर्षों से विलुप्त प्राय रहा। करीब साठ वर्ष पूर्व इस ग्रन्थ की एकमात्र उपलब्ध प्रति को पंडित येल्लप्पा शाष्त्री ने अनथक प्रयत्नों …
संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज : Sant Siromani Acharya Shri Vidyasagar Maharaj
संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज (Sant Siromani Acharya Shri Vidyasagar Maharaj) 22 साल की उम्र में संन्यास लेकर दुनिया को सत्य-अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले Acharya Shri Vidyasagar Maharaj की एक झलक पाने लाखों लोग मीलों पैदल दौड़ पड़ते हैं। उनके प्रवचनों में धार्मिक व्याख्यान कम और…
उत्तम त्याग धर्म : जाप्य—ॐ ह्रीं उत्तमत्यागधर्माङ्गाय नम:।
श्री रइधू कवि ने अपभृंश भाषा में त्याग धर्म के विषय में कहा है चाउ वि धम्मंगउ तं जि अभंगउ णियसत्तिए भत्तिए जणहु। पत्तहं सुपवित्तहं तव—गुण—जुतहं परगइ—संबलु तुं मुणहु।। चाए अवगुण—गुण जि उहट्टइ, चाए णिम्मल—कित्ति पवट्टइ। चाए वयरिय पणमइ पाए, चाए भोगभूमि सुह जाए।। चाए विहिज्जइ णिच्च जि विणए, सुहवयणइं…