श्री रइधू कवि ने अपभृंश भाषा में उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म के विषय में कहा है बंभव्वउ दुद्धरू धरिज्जइ वरू पेडिज्जइ बिसयास णिरू। तिय—सुक्खइं रत्तउ मण—करि मत्तउ तं जि भव्व रक्खेहु थिरू।। चित्तभूमिमयणु जि उप्पज्जइ, तेण जि पीडिउ करइ अकज्जइ। तियहं सरीरइं णिंदइं सेवइ, णिय—पर—णारि ण मूढउ देयइ।। णिवडइ णिरइ महादुह…
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दशलक्षणधर्म : उत्तम अकिंचन’ यानी आत्मकेंद्रित करना
उत्तम आकिचन्य धर्म आत्मा की उस दशा का नाम है जहां पर बाहरी सब छूट जाता है किंतु आंतरिक संकल्प विकल्पों की परिणति को भी विश्राम मिल जाता है। बाहरी परित्याग के बाद भी मन में ‘मैं’ और ‘मेरे पन’ का भाव निरंतर चलता रहता है, जिससे आत्मा बोझिल होती…
सिरिभूवलय-Siribhoovalaya – Kumudendu Muni
मुनि कुमुदेन्दु गुरु विरचित सर्व भाषामयी अंकाक्षर भाषा काव्य “सिरि भूवलय” (Siribhoovalaya) एक अद्भुत एवं संपूर्ण विश्व में अद्वितीय रचना है। अंकाक्षर भाषा की जटिलता के कारण यह ग्रन्थ पिछले करीब एक हज़ार वर्षों से विलुप्त प्राय रहा। करीब साठ वर्ष पूर्व इस ग्रन्थ की एकमात्र उपलब्ध प्रति को पंडित येल्लप्पा शाष्त्री ने अनथक प्रयत्नों …
संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज : Sant Siromani Acharya Shri Vidyasagar Maharaj
संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज (Sant Siromani Acharya Shri Vidyasagar Maharaj) 22 साल की उम्र में संन्यास लेकर दुनिया को सत्य-अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले Acharya Shri Vidyasagar Maharaj की एक झलक पाने लाखों लोग मीलों पैदल दौड़ पड़ते हैं। उनके प्रवचनों में धार्मिक व्याख्यान कम और…
उत्तम त्याग धर्म : जाप्य—ॐ ह्रीं उत्तमत्यागधर्माङ्गाय नम:।
श्री रइधू कवि ने अपभृंश भाषा में त्याग धर्म के विषय में कहा है चाउ वि धम्मंगउ तं जि अभंगउ णियसत्तिए भत्तिए जणहु। पत्तहं सुपवित्तहं तव—गुण—जुतहं परगइ—संबलु तुं मुणहु।। चाए अवगुण—गुण जि उहट्टइ, चाए णिम्मल—कित्ति पवट्टइ। चाए वयरिय पणमइ पाए, चाए भोगभूमि सुह जाए।। चाए विहिज्जइ णिच्च जि विणए, सुहवयणइं…